मर्म विज्ञान | Marma Vijnj-aan

Marma Vijnj-aan by आयुर्वेदाचार्य पं. रामरछ पाठक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ मम-विज्ञान ओर तमोगुण श्र जीवात्मा शरायः निवास करता है । जिस से मर्म पर श्राघात होने से मनुष्य नहीं जीवित रहता उपयुक्त वणन मम के वाच्याथ तथा महत्व की बतलाने के लिये किया गया है। मर्मो का वर्णन ्यायुवेंद में अपनी विशेषता रखता है और आयुर्वेद के आचार्यो के अविकल शारीरज्ञान का पुष्ट प्रमाण है । मर्मों के शाख्रोक्त वणन के ज्ञान के बाद अयुवेंद के की प्राप्नलता निर्विकार हो जाती हैं । ऐसे मर्म मानव शरीर में १०७ हैं । बनावट श्वाहत होने पर होने वाले परिणाम तथा स्थान आदि के अनुसार इनके अनेक प्रकार हैं । सप्तो्तरं ममशतं तानि मर्माणि पश्चात्समकानि भवन्ति । . सु० शा० मर्म १०७ हैं। ये मम पश्चात्मक अर्थात्‌ पॉच प्रकार का वाले पश्चचिधः झात्पा येषां तानि पश्चात्सकानि है । यहां आत्मा का अथ शरीर है । अर्थात्‌ जिस से मर्मो का शरीर या देह बनी है. वे वस्तुएं । ये वस्तुएँ पौँच होती हैं जसे-- १ मांस २ सिरा २ स्नायु ४ संघि ५ श्स्थि । अतः इनके अनुसार मर्मों के नाम पढ़े हैं । जंसे--मांसमम सिरामर्म स्नायुसर्म श्स्थिमर्म ओर संघिमम । परन्तु यहाँ यदद स्मरण रखना चाहिये कि इन का नामकरण उत्क्षेण व्यपदेशः के अनुसार हुआ है । श्रतः ये मर्म जिन वस्तुओं के नाम से संज्षित हुए. हैं उनके अतिरिक्त भी ममनिमायक वस्तु वहाँ होते हैं । अष्टाज्-हृदय में वागभट ने पांच के बदले ६ मर्मों के प्रकार का उल्लेख किया है। उस में उक्त मर्मों के अतिरिक्त घमनीमम का भी उल्लेख हूं । इन की कुल संख्या में कोइ अन्तर नहीं है । केवल मांस श्स्थि न पर न निवास मय न. न रानी १- आत्मा जीवे धरती देहे स्वभावे परमात्मनि । बजयन्ती आत्मा कलेदरे यत्ने स्वभावे परमात्मनि । घरणि २- तरपुनमाससिरास्नाय्व स्थिसंधघिसल्निपातः बाहुल्येन तु निर्देश । ० सं० शा० ७ ३- मांसास्थिस्नायुधमनी सिरासंधिसमागमः । स्यान्मर्मेति ते वात्र सुतरां जीवित स्थितम्‌ ॥ ० से० शा० ४




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