प्रेमह - विकार | Premh - Vikar

Premh - Vikar by कविराज रामरक्षा पाठक - Kaviraj Ramaraksha Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“'प्रभूतं वश 5 विलें वापि क्वचिद्वोभयकक्षणमू । प्रायशश्चेर्ख्र वेन्पुत्र॑ तदा मेड विनिदिशेद्‌ ॥”' प्रभूत ओर शआतिल ये दो प्रधान उक्तण प्रमेह के हैं । हमें यह देखना है कि मृत्र की ये दो असाधारण अवस्थाएं किन २ कारणों से होता हूं। प्रथम प्रभूत अर्थात्‌ मूत्र की अधिकता जिन कारणों से हाती है उनका बणन किया जाता है । प्रभूतमूत्र के कारण-- (१) अधिक जलपान बा जलीयांश वाले पदाथ का भक्ण। (न) मचुमेहू ( 120१८ 11९]10प5 ) (३) जीग्य केन्द्रस्थ वचुक्कशोथ ( (पाएपट . प्रासा9ि 0181 116]31111(15 (४) रक्तभाराधघिक्य ( पाए, ते रटपनपााट है (छ) पिट्यटरी बॉडी के रोग ( 1)1868565 0. फू (पा एक्ा एक, ७0 ) (६) मूत्र श्ौषधों का सेवन | (७) बहुमूत्र ( 12घ96065 पड़ी |जतेपड ( ८) कक पेघारा, (& ) वि प्रेत ए0ए९]211'085, ,/ (३१० )ज्वरान्ते मोह ( (०0 रणो5एटाए९ पपटा' दिएटा' ) (११ )मानसिक रोग ( पिप्रडटिपंघ, पट? ए005 हू ७6170, एल ा055, ह101101001151, (१२ )1)पाा9४ घि.?. श्र] 00 0 हडपतेघप्रिठ0 नहा] 88 [0] पाप थी पाडोएश, आधविलमूत्र के कारण--




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