रहिमन शतक | Rahiman Shatak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रहिमन शतक । &
बहुत उँी योग्यता वाले भी पेट के कारण बंधन स्वीकार
करते है ।
अलंकार अन्योक्ति अथवा हेतु ।
कि
/* दोहा--गति रहीम बड़ नरन की ज्यों तुरंग व्यवहार ।
दाग दिवावत आएुतन सही होत असवार ।॥२०॥।
भावाथे--गति्प्रछति, स्वभाव । तुरंगध्घोड़ा । सदी
दोनाननौकरी में बहाठ होना ।
( विशेष )--मुगठों के समय में फौजी दुस्तूर था कि जब
कोई सवार नौकर रखा जाता था तब उसका घोड़ा पुरठे पर
दाग दिया जाता था । घोड़े का दागा जाना ही . उसकी नियुक्ति
कां चिस्ह था । इसी पर रहीम को यह उक्ति सूमी । न
.. भावार्थ--रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की प्रकृति ठीक
घोड़े के व्यवहार के समान है, कि अपने शरीर पर दाग दिल-
वाता है ( जलने का कष्ट सहता है ) और नौकरी पर. बहाल
होता है उसका अझसवार ( अर्थात बड़े लोग दूसरों के लिये खुद
कष्ट सहते है ) । बैक ,
अलंकार --प्रतिबस्तूपप्ा ।
दोहा--गहि सरनागति राम की भवसागर की नाव |
रहिमन जगत उधार कर ओर न कछू उपाव॥२१॥।
भावार्थ--रहीम कहते हैं कि रामजी की शरण गहदी जो
संसार रूपी समुद्र के लिये नाव है, क्योंकि जगत से उद्धार
पाने के लिये और कोई दूसरा उपाय नहीं है ।
अलंकार--निद्शेना ।
दोहा-ुन ते लत रहीम जन सलिल कूप ते काढ़ि ।
कूपहु ते कहूँ होत है मन काहू को बाहि ॥२२॥ ४
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