रहिमन शतक | Rahiman Shatak

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Rahiman Shatak by भगवानदीन - Bhagawanadeen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहिमन शतक । & बहुत उँी योग्यता वाले भी पेट के कारण बंधन स्वीकार करते है । अलंकार अन्योक्ति अथवा हेतु । कि /* दोहा--गति रहीम बड़ नरन की ज्यों तुरंग व्यवहार । दाग दिवावत आएुतन सही होत असवार ।॥२०॥। भावाथे--गति्प्रछति, स्वभाव । तुरंगध्घोड़ा । सदी दोनाननौकरी में बहाठ होना । ( विशेष )--मुगठों के समय में फौजी दुस्तूर था कि जब कोई सवार नौकर रखा जाता था तब उसका घोड़ा पुरठे पर दाग दिया जाता था । घोड़े का दागा जाना ही . उसकी नियुक्ति कां चिस्ह था । इसी पर रहीम को यह उक्ति सूमी । न .. भावार्थ--रहीम कहते हैं कि बड़े लोगों की प्रकृति ठीक घोड़े के व्यवहार के समान है, कि अपने शरीर पर दाग दिल- वाता है ( जलने का कष्ट सहता है ) और नौकरी पर. बहाल होता है उसका अझसवार ( अर्थात बड़े लोग दूसरों के लिये खुद कष्ट सहते है ) । बैक , अलंकार --प्रतिबस्तूपप्ा । दोहा--गहि सरनागति राम की भवसागर की नाव | रहिमन जगत उधार कर ओर न कछू उपाव॥२१॥। भावार्थ--रहीम कहते हैं कि रामजी की शरण गहदी जो संसार रूपी समुद्र के लिये नाव है, क्योंकि जगत से उद्धार पाने के लिये और कोई दूसरा उपाय नहीं है । अलंकार--निद्शेना । दोहा-ुन ते लत रहीम जन सलिल कूप ते काढ़ि । कूपहु ते कहूँ होत है मन काहू को बाहि ॥२२॥ ४




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