अजेय राष्ट्र भावना | Ajaai Rastra Bhawana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ प्रजेय भारत
मैंने भी कभी चीन से लौटकर उसके शभ्रतीत के बडप्पन पर
किताबे लिखी थी--'लाल चीन, “'कलकत्ते से पीकिंग' !
किसने नहीं लिखा *? किसने चीन के उस तीखे जहर को नहीं
पिया जिसकी ऊपरी सतह पर मधु तेरता था, भीतर जिसके
हलाहल घुना था *? चीन से लौटते ही हमारे उदारचेता श्रप्र-
तिम जननायक नेहरू ने क्लकत्त से ऐलान किया था कि चीन
ने शान्ति के विकास मे गजब के कदम उठाये है, अपना देश
भी समाजवादी विकास की झ्रोर डग मारेगा । उसी की देखा-
देखी उन्होने सरकारी श्रफसरों का बद कोट के लेबास का भी
विधान किया । झ्ौर उसी चीन ने, जिसके नर-चारियो के
सिखाये, प्रदर्गनप्ररित स्वागत ने हमारे पडित का मन मोह
लिया था, श्राज भारत पर हमला किया है !
मध्य एणिया के कुची मे जब भिक्षु कुमारजीव धर्म साध
रहा था तब चीनियो ने हमला कर कुमारजीव को कैद कर
लिया । कुमारजीव बोला--बिन मागा वरदान मिला, ले चलो
उस देव को जहा भगवान के उपदेग के लिये मेरे ग्यारहो
प्राण जागय्रत है । श्ौर हुगो के देश चीन मे छान्ति और दया
के प्रवचन कहे कुमारजीव ने । इन गुरुवाक्यों का प्रतिफल
ग्राज फल रहा है। चीन के हुणो ने भारतीय इतिहास के सुन-
हरे युग को रीढ तोड दी भ्रौर बदले मे भारत ने चीन के पास
शाति के दूत भेजे, श्रपने स्नेह के खोत खोल दिये जिससे देश
पिये और पुष्ट हो ! मध्य एशिया की श्रगम्य मरुभूमि को
भुख-प्यास से व्याकुल, खच्चरों की नसो के रक्त से प्यास
बुभकाते भारतीय साधु हुणो के देश तुनहुवाग पहुंचते श्रौर वाणी
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