संध्या छाया | Sandhya Chhaya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : संध्या छाया  - Sandhya Chhaya

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कुसुम कुमार -Kusum Kumar

No Information available about कुसुम कुमार -Kusum Kumar

Add Infomation AboutKusum Kumar

जयवंत दलवी - Jayvant Dalavi

No Information available about जयवंत दलवी - Jayvant Dalavi

Add Infomation AboutJayvant Dalavi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जानी जाना जानी नाना नानी नाना नानी जाना नानी नाना नानी नाना नानी सध्याछाया 27 है मोर खिडकी सेम्हादू को दंख लेते हैं । कुछ दामिदा होकर वही सडे रह जाते हैं। म्हाट्ू, हाथ का खाली लोटा लेकर अदर जाता है और जाते जातें नाना के हाथ का भरा हुआ लोटा भी ले जाता है । नानी देखती रह जाती है 1] बया हुआ ? (गुस्से से) क्या हुआ, कया ? कहे दना हु, इस उल्लू के पटठे का रौब नहीं चलने दूगा मैं-- विसका * (हसती है।) इस इस स्हाट्ट का । सर फोड के रख दूगा साले को पर वह तो आपके आराम के लिए ही करता है ना ? (हुसती है।) (उसकी हसी से चिढकर) हस मत, उल्टी योपडी होन दो, आप यू कीजिए क्‍या * आज अच्छी घूप निकली है. हम यू करते हैं. सभी रेशमी साडियों को घूप दिखाते हैं । मैं ? सादिया घूप मे डलवाऊ ? क्यो है रेलवे मे कतास घन भाडिटर था मैं ! तरी साडिया को धूप दिखाऊ * रास्ता देख अच्छा ! मैं डालती हु घूप मे, आप जरा दो ट्रक तो खीच देंगे ना [नाना धीरे धीरे खाट की तरफ बढ़ते ह । भुक्कर एक हाथ खाट पर रखत हैं। दूसरे हाथ से ट्रक खीचन ही वालें हाते हैं कित्तमी अदर से म्हाद्वू आता है और चट से ट्रव खीच वर नानी के सामने रखकर अंदर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now