नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक | Natyashastra Ki Bhartiya Parampara Aur Dasrupak

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पृथ्वीनाथ द्विवेदी - Prathvinath Dwivedi

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हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बे. - पर पहन नाख्य-ज्ञास्त्र को भारतीय परस्परा पक 'सामवेद' से गीत-भ्रंश लिया गया, यह कहना ठीक ही है । ऋक्‌ या पद्च को साम की योनि कहा गया है । योनि श्रर्धात्‌ उत्पत्ति-स्थल । ग्राचिक श्रौर उत्तराधिक, ये सामवेद के दो भाग हैं। श्राचिक श्रर्थात्‌ ऋचाग्ों का संग्रह । इसमें ५८५ ऋचाएँ हैं। विटरनित्स ने कहा है कि इसकी तुलना एक ऐसी गान-पुस्तक से की जा सकती है जिसमें गान के केवल एक-एक ही पद्य लय या सुर की याद दिलाने के लिये संग्रह किये गए हों । दूसरी ओर उत्तराचिक ऐसी पुस्तक से तुलनीय हो सकता है जिसमें पूरे गान संगृहीत होते हैं श्रौर यह मान लिया गया होता है कि सुर या लय पहले से ही जाने हुए हैं । कहने का रथ है कि मामवेद एक श्रत्यघिक समृद्ध संगीत-परम्परा का परिचायक ग्रन्थ है । इसलिये शास्त्रकार का यह कहना कि 'नाट्यवेद' में गीत सामवेद से लिए गए हैं, युक्तियुक्त आर साधार है । शास्त्र का दावा है कि 'नाट्य-वेद' में जो अभिनय है वह 'यजुर्वेद' से लिया गया है । “यजुर्वेद' श्रध्वर्युवेद कहलाता है । पतब्जलि ने 'महा- आधष्य' में बताया है कि उसकी १०१ शाखाएँ थीं । यज्ञ में झध्वयुं लोग 'यजुर्वेद' के मन््रों का पाठ करते हैं । इस वेद की पाँच श्ञाखाएँ या पाँच विभिन्‍न पाठ प्राप्त हैं । १. 'काठक' श्र्थात्‌ कठ लोगों की संहिता, (२) “कपिष्ठल-कठ- संहिता' कुछ थोड़ी-सी भिन्न दौर अ्रपूर्ण हस्तलिपियों में ही प्राप्त हुई है, (३) 'मैत्रायणी संहिता' श्रर्थात्‌ मैत्रायणीय परम्परा की संहिता; (४) 'तेत्तिरीय संहिता या झापस्तम्ब संहिता (इन चारों में बहुत साम्य है । इन्हें कृष्ण यजुर्वेद की लाखा कहते हैं ।) तथा (५) 'वाज- सनेयी संहिता' शुक्ल यजुर्वेद की संहिता कहलाती है। इसका नाम “्याज्वल्क्य वाजसनेयी' के नाम पर पड़ा। यही इस शाखा के श्रादि आचार्य थे। इसकी भी दो शाखाएँ प्राप्त हैं, कण्व श्रौर माध्यन्दिनीय । '्यजुवेंद भाष्य' की भूमिका में महीघर ने लिखा है कि व्यास के शिष्य बैशम्पायन ने श्रपने याजञवल्क्य इत्यादि शिष्यों को चारों वेद




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