प्रभु प्रसादी | Prabhu Prasadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ आरती श्रीगजानंदजी की राग श्याम कल्याण नित धरू आपका मन से ध्यान हे गजानद महाराज। मुझे सद्‌ बुद्धि करदो प्रदान हे गजानद महाराज ॥ विघन निवारन कारज सारो रिधि सिधि चवर ढुलाय। देव आरती करते मिलकर ऋषि मुनि महिमा गाय॥ नारद की बीना छेड़े तान हे गजानद महाराज। गले माल मणि मुकट भाल सोवे मुसे असवारी।। मोदक का भोग लगाते विधि से नाम काम सुखकारी। आगन मगल पाऐ जहान हे गजानद महाराज ॥ आप दया के सागर गणपति ध्यान गान से धरते। शुद्ध भाव के पुष्प चरन मे रख नत मस्तक करते ॥ मुझे बीच सभा में दो सम्मान हे गजानद महाराज। मस्तक ऊचा रहे भारत का खुशिया घर घर झूमे ॥ धरती दे वरदान सफलता इन हाथो को चूमे। शिव पाण्डे झोली भरो ग्यान हे गजानद महाराज ॥ केमेज २ जाके मुख राम नाम राम विलक जाके मुख राम नाम धनवान वोई हे धनवान वोई हे बलवान वोई हे, जाके मुख राम नाम चन्दन से महके अनमोल बोल बोल रे। सुन कलयुग का सिगासन जाये डोल रे ॥ मीरा की चदरिया गुरु ग्यान धोई हे । जाके मुख राम नाम (९)




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