हिंदी का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन | Hindi Ka Bhasha -vagyani Aadhyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे भाषा का श्रध्ययतन किया बल्कि पशु-पक्षियों तक की भाषाओ के अध्ययन की श्रोर उनका ध्यान था !* भाषा-सम्बन्धी जिज्ञासा की भावनद् भी उनकी उतनी ही प्रबल और विस्तृत थी. जितनी अन्यत्य ऑस्मिक बॉर भातिक विषयों को हृदयंगम करने की तीव्र लालसा । हमारा यह सौभाग्य है कि इस विस्तृत परम्परा का कुछ अश अभी तक स्थिर भ्ौर विद्यमान है 1« इसी प्रकार विद्व के अन्यान्य देशों में भी भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन का ओर प्राचीन काल में विद्वेष ध्यान दिया जाता था । इस सम्बन्ध, मैं ग्रीक -साहित्य विशेष उल्लेखनीय है । आधनिक युग मे भाषा के वेज्ञानिक श्रध्ययन की ओर जितना अधिक ध्यान पाइचात्य देशों मे दिया गया है उतना हमारे देश में नहीं | _युन्नमि” भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन के क्षेत्र में अपनी प्राचीन विस्तृत परम्परा के कारण संस्कृत विशेषतया वेदिक भाषा श्रपना, महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए है तथापि यह देख कर भ्रत्यन्त दु:ख होता है कि अपने देश की प्राचीन परम्पराश्रों को सजीव, सुरक्षित और विकसित करने मे उतना परिश्रम भारतवासियों द्वारा नहीं किया जा रहा । संस्कृत तथा अन्य प्राचीन व अर्वाचीन भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा विभिन्‍न परिचसी देलों में भाषा-विज्ञान के क्षेत्र मे बहुमूल्य कार्य किया जा रहा है । हमारे देश मे. इस विज्ञान के अध्ययन को न तो उतना महत्त्व दिया जा रहा है और न साधारणतया लोगों की रुखि ही इस विपय की ओर दिखाई देती है 1. भारतवर्ष में किसी भाषा के साहित्य विषय के साथ ही थोड़ा बहुत भाषाविज्ञान को झध्ययन किया जाता है। साहित्य के अन्यान्य सरस विषयों की तुलना में यह विषय अत्यन्त झुष्क, नी रस और जटिल दिखाई देता है । कविता,उपन्यास, नाटक, कहानी, श्रालोचनां आदि साहित्यिक विषयों में तो _ 1, पातब्जल योग सुत्न में लिखा है, “दाब्दारथप्रत्ययानासितरेत- राध्यासात्‌ संकरस्तत्प्रविभागसंयमात्‌ स्थभूत-रुत-शञानम्‌” विभूतिपाद देना र७ 1




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