स्वमी रामतीर्थ के लेख व उपदेश भाग १६ | Swami Ram Tirth Ke Lekh And Updesh-part 16

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Swami Ram Tirth Ke Lekh And Updesh-part 16 by रामेश्वरसहाय सिंह - Rameshwar Sahay Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ व्यावहारिक बेदान्त हैं ख़ते-तक़दीर से यह ख़ते पेशानियाँ ; पेश आती हैं यही जो हैं पेश-श्रानियाँ | योगबाशिष्ठ में लिखा है कि पुरुषाथ ही से काय की सिद्धि दोती है! सारे बुद्धिमान लोगों के काम पुरुपाथ हो से होते हैं। प्रारू्ध का शब्द तो केवल उन लोगों के आँसू पोंछने के वास्ते बनाया गया था, जो कोमल-चित्त हैं, और जिन पर कोई विपत्ति आ पड़ी है, नहीं तो नित्यप्रति जीवन के कुल काम पुरुषार्थ ही से हो सकते हैं । मनुष्य भोजन भी पुरुपाथ ही से खाता है, पानी भी पुरुषार्थ ही से पीता है, नौकरी भी पुरुषाथ ही से करता है, कोई सावजनिक काम भी पुरुषाथ ही से करता है । इस भूमिका के पश्चात्‌ राम ज़रूरो उन्नति को, सफलता के साथ करने के उपायों को बताता है । उद्योगों में कृतकायता प्राप्र करने के लिये इन बातों का ध्यान रखना चाहिए । ( १) सांसारिक काम-घंधों के निमित्ति सबसे पहली वस्तु प्रकाश है। कैसा दी निमल और स्वच्छ घर क्यों न हो, यदि घिरे में जाझोगे, तो कहीं कुरसी की चोट लगेगी, कहीं दीवार से सिर टकरायेगा, कहीं लम्प से ठोकर लगेगी, और वह टूट जायगा ; निदान, पग-पग पर दुग्ख ही दुख होगा । फिर बिना प्रकाश के कोई वस्तु उग नहीं सकती । एक पौधा शंपेरे' में बोया जाय श्र दूसरा प्रकाश में; श्र दोनों का सीचना एक ही प्रकार किया जाय । परिणाम क्या होगा ? स्पष्ट है कि छँधेरे में बोया हुआ 'पौधा सुख जायगा और प्रकाशवाला खूब हरा-मरा होता चला जायगा। फिर जब बिना प्रकाश के बृक्त नहीं




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