स्वामी रामतीर्थ के लेख व उपदेश भाग १५ | Swami Ram Tirth Ke Lekh And Updesh Part 15

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Swami Ram Tirth Ke Lekh And Updesh Part 15 by रामेश्वरसहाय सिंह - Rameshwar Sahay Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामेश्वरसहाय सिंह - Rameshwar Sahay Singh

Add Infomation AboutRameshwar Sahay Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१९ स्वामी रामतीथ में पाओरे । जब तुम अपनी आँखें किसी पर लगा दो, श्र प्रीति की इच्छो करो, तो उसका उत्तर तिरस्कार और अनादर बिना कभी और कुछ नहीं मिला, न मिलेगा, याद रक्‍्खो” । माई ! इसमें पन्थाई मगड़ों की क्या आवश्यकता है ? हाथ कड़्न को आरसी क्या है ? अगर क्लशरूपी मौत मंजर नहीं, तो शान्तिपूवंक अपने चित्त की अवस्था और उसके दुश्ख-सुखरूपी फल पर एकान्त में विचार करना आरम्भ कर दो, सच भू ठ आप निधर ही आयगा । अगर तुममें विचार- शक्ति रोगमस्त नहीं हे, तो खुद बखुद यह फ़ेसला. करोगे कि चित्त में त्याग अवस्था और , त्रह्मोनन्द हुए ऐश्वय्य, सौभोग्य इस तरह हमारे पास दौड़ते आते हैं, जैसे भूखे बालक माँ के पास-- यथेह्द जुधिता बाला मातारं पयु पासते ॥ [ स्ामवेद ] जब हमारे अन्दर सच्चा गुण तर शान्ति रूपी विष्णु होगा, तो लददमी अपने पति की सेवा निमित्त, हज़ोरों में, हमारे द्रवाज़ पर अपने आप पड़ी रहेगी । कई ममुषण्य शिकायत करते हैं कि भक्ति और धम करते करते भी दुःख द्रिद्र उन्हें सताते हैं ओर अधर्मी लोग उन्नति करते जाते हैं । यद दुःखिया भूनेसाले काय कारण के निणुय करने में अन्वयठ्यतिरेक को नहीं बते रहे । इन को यह मालूम ही नहीं कि धम्म कया है और भक्ति क्या । स्वाथं आर ईर्षा ( देदाभिमान को तो उन्होंने छोड़ा ही नद्दीं, जिसक छोड़ना ही धर्म को आचरण सें लानो था ; अब उनका यह गिला कि धर्म को वतंते बतते .दुःख में डूबे हैं, क्योंकर युक्त वा सत्य हो सकता है ? अगर धर्म को बर्ता होता, तो यह शिका- यत, जिसमें स्वाथ और ईइंष्यां दोनों मौजूद हैं, कभी न करते । दह दान 'और भजन भी घम में शामिल नहीं हो सकते, जिनसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now