स्वामी रामतीर्थ के लेख व उपदेश भाग १५ | Swami Ram Tirth Ke Lekh And Updesh Part 15
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९ स्वामी रामतीथ
में पाओरे । जब तुम अपनी आँखें किसी पर लगा दो, श्र
प्रीति की इच्छो करो, तो उसका उत्तर तिरस्कार और अनादर
बिना कभी और कुछ नहीं मिला, न मिलेगा, याद रक््खो” ।
माई ! इसमें पन्थाई मगड़ों की क्या आवश्यकता है ?
हाथ कड़्न को आरसी क्या है ? अगर क्लशरूपी मौत मंजर
नहीं, तो शान्तिपूवंक अपने चित्त की अवस्था और उसके
दुश्ख-सुखरूपी फल पर एकान्त में विचार करना आरम्भ
कर दो, सच भू ठ आप निधर ही आयगा । अगर तुममें विचार-
शक्ति रोगमस्त नहीं हे, तो खुद बखुद यह फ़ेसला. करोगे कि
चित्त में त्याग अवस्था और , त्रह्मोनन्द हुए ऐश्वय्य, सौभोग्य
इस तरह हमारे पास दौड़ते आते हैं, जैसे भूखे बालक माँ
के पास--
यथेह्द जुधिता बाला मातारं पयु पासते ॥ [ स्ामवेद ]
जब हमारे अन्दर सच्चा गुण तर शान्ति रूपी विष्णु होगा,
तो लददमी अपने पति की सेवा निमित्त, हज़ोरों में, हमारे द्रवाज़
पर अपने आप पड़ी रहेगी । कई ममुषण्य शिकायत करते हैं कि
भक्ति और धम करते करते भी दुःख द्रिद्र उन्हें सताते हैं ओर
अधर्मी लोग उन्नति करते जाते हैं । यद दुःखिया भूनेसाले काय
कारण के निणुय करने में अन्वयठ्यतिरेक को नहीं बते रहे । इन
को यह मालूम ही नहीं कि धम्म कया है और भक्ति क्या । स्वाथं
आर ईर्षा ( देदाभिमान को तो उन्होंने छोड़ा ही नद्दीं, जिसक
छोड़ना ही धर्म को आचरण सें लानो था ; अब उनका यह
गिला कि धर्म को वतंते बतते .दुःख में डूबे हैं, क्योंकर युक्त वा
सत्य हो सकता है ? अगर धर्म को बर्ता होता, तो यह शिका-
यत, जिसमें स्वाथ और ईइंष्यां दोनों मौजूद हैं, कभी न करते । दह
दान 'और भजन भी घम में शामिल नहीं हो सकते, जिनसे
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