सूर साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन | Sur Sahitya Ka Sanskritik Adhyayan

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Sur Sahitya Ka Sanskritik Adhyayan by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद हूं पनास--द्ुम-गन-मध्य पल्ास-मंजरी, उदित श्रगिनि की नाइं5* | पीपर--्रनुदिन श्रति उत्पात कहाँ लगि, दीजे पीपर को बन दाहिन 3 | बदरी--ऊद़ि घो री कुमुदिनि, कली कट, कद्टि चदरी करवीर 3९ | बट--कदि थो कंद, कब बकुल बट चंपक दाल तमाल5 5 | मलय--जद्यपि मलय-बृच्छ तड काटे कर कुठार पकरे5४ | सखिवार--पग न इत उत धरन पावत उरकि मोइ सिवार3* | सेंवार--सुभट मन मकर श्ररु केस सेंवार ज्यों धनुष मछ चर्म कूरम बनाइ 3९ | लवंगलता--फूते चंपक चमेलि फूलि लबंगलता वेलि सरस रसही फूल डोल5* | ऊ. फल--अंब (बुआ, रसाल); ककरी, खीरा; दाड़िम, निवुआ, श्रीफल आदि। अँब--तहाँ मौरे अंब्र फूले निबुश्रा जहँ सदा फर फूले सरस रसहदी फूल डोल5< | झंबुआ--मौरे अबुआ श्ररु दम बेली मघुकर परिमल भूले5१ | रसाल--नव बलली सुंदर नव नव तमाल | नव कमल महा नव नव रसाल** | ककरी--जब ले यूर कदति है उपजी सब ककरी करुई** | खीरा--बाहर सिलत कपट भीर यौँ ज्यों खीरा की रीति** | दाड़िम--चंपक बरन चरन कर कमलनि दाड़िम दसन लरीष5 | निवुआआ--तहाँ मौरे झंब फूले निवुआ जहँ सदाफर फूले सरस रसहदी फूल डोलर्ड४ श्रीफल--जबहि सरोंज घरव्यी श्रीफल पर तब जसुमति गई श्राइ* | ए.. फूल--झंबुज(--इंदीवर, कंज, कमल, कुसेसय, जलज, जलजात, तामरस, बारिज, राजिव, राजीव, सतदल, सरोज), श्भतिसी, कदंब, कनिारी, कनीर, कनेल,; करना, कुंद, कुमुद, कुमुद्नि, कूजा, केतकि या केतकी, केवरा, चंपक,; चमे लि ३०, सा५ र८रे | ३१, सा० १४८८३ ३२, सा० १०६१ | ३३, सा० १०8१ | रे, सा० १-११७ | इे५, सा« १-६१ | ३६, सा० ४१८३ | ३७, सा० २४१७ | ३८, सा० २६१७ | ३६, सा० र८श४ | ४०. सा०् रद४६ | ४१. सां० देर््६। २, सा० ०४९ | ४३, सा० £-६३ | ४४. सा० २६१७ | ५, सा० ६८२ |




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