पांचवे पुत्र को बापू के आशीर्वाद | Panchave Putra Ko Bapu Ke Aashirwad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनोखा संबंध हो गई और उसीसे अब भी प्रेरणा, ले रही है। हित्दुस्तानके लोग, और कुछ हद तक हिंन्पुस्तानके अंग्रेज-राज्यकर्त्ता भी; गांधीजी के रचनारमक कार्यक्रमकी' संजीवनीकों बहुत' कुछ समझ सके। लेकिन गांधीजीके तीसरे पहलूकां कार्य, उसकी गहराई, उसका विस्तार और उसकी तेजाब जेसी शुद्धि-शबित' बहुत कम लोग जानते हैं। गांधीजीके इस तीसरे कार्यसे जिन परिवारोंको लाभ हुआ ने ही उसंकी' लोकोत्तरता ज़ानति हैं। छेकिन' वे भी उसका विस्तार कहांसे जानें ? गुप्त दानका माहात्म्य जिस तरह सबसे बड़ा है, बैसे ही इस आध्यात्मिक, उत्क८, व्यक्तिंगत' और पारिवारिक सेंवाका माहात्म्य भी असाधारण 'है। में तो मानता हूं कि गांधीजीके ऊपर बतायें हुए विधिध कार्योम इस आखिरी अप्रकंट सेवा-कार्येका महत्व दूस रे प्रकट कार्यो तसिक भी कम नहीं. हूँ । . सदुभाग्ससे इन तीनों पहुलुओंका परिचय हुमें यहां इन' पत्तों में सिलता है। और विश्वेष तो यह कि जो पहलू हम या जगतके लोग अन्यथा नहीं संमझ सकते वह इस पत्र-संग्रहमें विशेष रूपसे प्रकट हो रहा हैं। इतिहासकी दुष्टिसे' भर आध्यात्मिक दूष्टिसि भी यह मसला एक असाधारण दस्तावेज है। ... हम यहां यह भी देखते हैं कि जिस तरह गांधीजीनें जेमनालिलजी के जीवनमें और परिवारमें प्रवेदा किया उसी तरह या उससे भी अधिक जमना- छालजीने भी गांधीजीके जीवनमें, उनके जीवन-कार्यमें, उनके कुटुबमें और उनके विश्ञाल राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिवारें प्रवेश किया। इसी परसे हम अन्दाज कगा सकते हैं कि.जमनाछालजीकी बिभूति भी' कितनी उत्तुंग और मर्मस्पर्णी थी। अगर गांधीजीने जमनालालजीकी कई उलझनें सुछ्झाई तो जमनालालजीन भी गांधीजीकी व्यक्तिगत तथा संस्थागत उछकझनें सुलझानेमें अपनी असाधारण निष्ठा और कुशलता दिखलाई है। ऐसा करते-करते उन्होंने इतना अधिकार पाया था कि कभी-कभी उनको गांधीजीसे कड़ी' शिकायंत' करते और उनके रुखकों सुधारते हुए भी. देखा गया है। ऐसे . समय गांधीजीकी प्रसन्नता एवं धन्यता कुछ अजीब ढंगसे उनके चेहरे पर .. प्रकट होती थी। जब-जब गांधीजी जमनालालजीकी .बात' मान जाते तब जमनालालजीके मुंह पर भी ,सच्छिष्य होनेका आनन्द प्रग्ट होतीं थां,! इन निरेस्वार्थ, निरभिमान और समान दृष्टिके रोवकोंके बीच जो संवाद चलते थे, उनको सुननेका अधिकार या सौकी: मिनी मी एक भाग्य था।




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