यजुर्वेद संहिता भाषा - भाष्य भाग १ | Yajurved Sanhita Bhasha - Bhashya (bhag-i)

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Yajurved Sanhita Bhasha - Bhashya (bhag-i) by जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) कृष्ण शाखा हैं श्रोर इससे इतर वाजसनेय शिष्यपरस्परा में प्रसिद्ध बंद शुक्र शाखा हैं । पुराणों ने जो लिखा है कि याज्ञवस्क्य ने सूर्य से उन यजुर्गण को प्राप्त किया “यानि चेत्ति न तदू गुरु जिनको उनका. गुरु नहीं जानता था महिदास परिडत ने इसका सी यही साव लिया हैं कि तेपा ब्या सेनानुपदिष्र त्वाव, इति भाव. । झाथीतू उनका व्यास ने उपदेश नहीं किया ) उक्क परिडत ने शुक्र और कण होने का एक कारण यह भी बचलाया हैं। वेदोपक्रमणे चुदेशी फौर्णिमाम्रहणात्‌ शुक्लयजुः । प्रतिपदायुक्त पौर्मा मर्द णात्क्ृष्ण्य जुः ॥ ध्रथोत्‌ चेदोपक्रम काये में चतुदेशी को पूनस मानने से से शुक्क यज्जु कहाये और प्रतिपत्‌ से युक्त पूनम मान लेने से दूसरें। के कृष्ण यज्जु _ कहाये । परन्तु यह कारऊ तुच्छ एवं एकटेशी है । घ्राह्मण प्रन्थो में 'शुक्क” श्र 'कृष्ण' के सम्बन्धी नीचे लिखे उद्धरण प्राप्त होते हैं वे भी इस विपय पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं: । (१) तदू यच्छुक्ल तदू वाचो रूपम्‌ ! ऋचो अग्नेसत्योर । सा या सा चागु ऋक्‌ सा। अथ योडग्निडेत्यु: खः । अथ येत्कर्ष्णु तद॒पां रूपम्‌ श्रन्नस्य मनस. यजुष ॥ तदुयाइता आपोरड्से- तत्‌ | अथ यन्मनों यजुस्तत्‌। जैमिनीयोपनिषद् घ्राह्मणु १ [ २४॥ जो शुक्र है व वाणी का रूप है । कक शोर सृत्यु का भी श्वेत रूपहैं। वाणी ही ऋकं हैं । श्रम्ि सत्यु है । कृप्ण रुप जलों का अन्न और मन का हैं । आप सी अन्न है, मन यजु है । यह 'कुष्ण” श्र 'शुक्क” का आध्यात्मिक विवरण हैं । झ्रध्यात्म में वाणी शुक्क है प्र मानस सकरुप कृष्ण है। 'झाप ' थे अदा हैं, भ्रथोत्‌ जिस प्रकार शरीर मे सानस बर्ख ही श्रन्न के बने शरीर में क्रिया55घान करता है श्रोर उसी प्रकार वेदवाणियों को ग्रजुवेंद ही कसंकारड से नियुक्र करता है ।




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