यजुर्वेद संहिता भाषा - भाष्य भाग १ | Yajurved Sanhita Bhasha - Bhashya (bhag-i)
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
816
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
कृष्ण शाखा हैं श्रोर इससे इतर वाजसनेय शिष्यपरस्परा में प्रसिद्ध बंद
शुक्र शाखा हैं । पुराणों ने जो लिखा है कि याज्ञवस्क्य ने सूर्य से उन
यजुर्गण को प्राप्त किया “यानि चेत्ति न तदू गुरु जिनको उनका. गुरु नहीं
जानता था महिदास परिडत ने इसका सी यही साव लिया हैं कि तेपा ब्या
सेनानुपदिष्र त्वाव, इति भाव. । झाथीतू उनका व्यास ने उपदेश नहीं किया )
उक्क परिडत ने शुक्र और कण होने का एक कारण यह भी बचलाया हैं।
वेदोपक्रमणे चुदेशी फौर्णिमाम्रहणात् शुक्लयजुः ।
प्रतिपदायुक्त पौर्मा मर्द णात्क्ृष्ण्य जुः ॥
ध्रथोत् चेदोपक्रम काये में चतुदेशी को पूनस मानने से से शुक्क यज्जु
कहाये और प्रतिपत् से युक्त पूनम मान लेने से दूसरें। के कृष्ण यज्जु
_ कहाये । परन्तु यह कारऊ तुच्छ एवं एकटेशी है । घ्राह्मण प्रन्थो में 'शुक्क”
श्र 'कृष्ण' के सम्बन्धी नीचे लिखे उद्धरण प्राप्त होते हैं वे भी इस विपय
पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं: ।
(१) तदू यच्छुक्ल तदू वाचो रूपम् ! ऋचो अग्नेसत्योर ।
सा या सा चागु ऋक् सा। अथ योडग्निडेत्यु: खः । अथ येत्कर्ष्णु
तद॒पां रूपम् श्रन्नस्य मनस. यजुष ॥ तदुयाइता आपोरड्से-
तत् | अथ यन्मनों यजुस्तत्। जैमिनीयोपनिषद् घ्राह्मणु १ [ २४॥
जो शुक्र है व वाणी का रूप है । कक शोर सृत्यु का भी श्वेत
रूपहैं। वाणी ही ऋकं हैं । श्रम्ि सत्यु है । कृप्ण रुप जलों का अन्न
और मन का हैं । आप सी अन्न है, मन यजु है । यह 'कुष्ण” श्र 'शुक्क”
का आध्यात्मिक विवरण हैं । झ्रध्यात्म में वाणी शुक्क है प्र मानस
सकरुप कृष्ण है। 'झाप ' थे अदा हैं, भ्रथोत् जिस प्रकार शरीर मे सानस बर्ख
ही श्रन्न के बने शरीर में क्रिया55घान करता है श्रोर उसी प्रकार वेदवाणियों
को ग्रजुवेंद ही कसंकारड से नियुक्र करता है ।
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