नन्ददास :एक अध्ययन | Nanddas : Ek Adhayayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी श्र जो -चने हो मैं हूँ ऐसे स घ में श्री रणछोड़ जी के दरशन करि श्राऊं । तन्न नन्ददाप्त जी ने तुलसीदास नो सों कहो, जो तुम कहो तो मैं या सघ में भी रणछोड़ जी को दरशन करि श्राऊ ,'तब्र ठुलतीदास जी ने नन्द- दास ली को बहोत समुक्तायों जो--दू. कहीं मति जाय, सारग में दुश्ख चद्दोत हैं । श्रनेक दुः्संग हैं । जो--जायणो तो तू भष्ट होय जायगों ताते दू श्नी रणछोड़ जी ताई न पहुँच सकेगो, बीच दी में रदेगो । तातें' श्री रघुनाथ जी कों स्मरण कर श्रपने घर में बेद्थो रहे । तत्र नन्ददास ने तुलसीदास जी सों कह्मों जा ->मेरे तो श्री रघुनाथ जीहैं,परि मैं एक बार रणछोढ़ जी के दरशन कों श्रवश्य करिके नाऊ गो | तुम कोटि उपाय करो परि में न रहूँगो । तत्र तुलसीदास जी ने लान्यों जो--यदद न रहेंगो | जत्र संघ में जो--मुखिया सरदार इतो ताके पास नन्ददास को लेके तुलसीदास जी गये | श्रौर मुखिया सों नन्ददास की मलामन तुलसीदास जी ने दीनी, जो--यदद नन्ददास तुमारे स ग श्वत है । ताते तुम मार में याकी खली राखियो । ऐसी करियो भो--इद्दा फेरि नन्ददास श्रावे, काहु गाम में रहि न जाय । तर वा मुखिया ने क्यो जो--श्राछो, या बात की चिन्ता मति करो । ता पाछे वद संघ चल्यो, सो वाके सग नन्ददास हू चल्यो । सो कल्लुक दिन में वह स घ मथुरा जी में श्राप पहुँच्यो । तब संघ तो मधुपुरी में रहो, श्रौर नन्ददास तो मधुपुरी की शोभा देखत देखत विश्वात ऊपर श्राये । सो चह्दा श्रनेक खत्री पुरुष स्नान करत देखे, श्रौर सुन्दर स्वरूप के देखे सो नन्ददास तो मन मे देखि के अहुत हो मोहित भये । श्रौर मन में विचार कियो जो--ऐती जगह में कछुक दिन रहिये तो श्राछी है | सो या भांति नन्ददास श्रपने मन में छुमाये । ता पाछे नन्द्दास ने श्रपने मन में यदद विचार कियो ज्ञो--एकबार श्री रणछोड़ जी ने दरशन करि श्राऊ । ता पाछें आइके विश्रातघाठः ऊपर रहेंगे ।




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