श्री रामकृष्ण वचनामृत भाग २ | Sriramakrishnabachanamrita Part 2

Sriramakrishnabachanamrita Part 2 by महेन्द्रनाथ गुप्त - Mahendranath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६९२ श्रीरामकृष्णवचनामृत होते है, परन्तु जब बाहर जाते हैं, तब दूसरी तरह के हो जाते हैं। नरेन्द्र अब संसार की चिन्ता में पड़ गया हैं। उसमें कुछ हिसाबवाली बुद्धि है। सब लड़के कया इसकी तरह कभी हो सकते हैं ? “आज मैं नीलकण्ठ का नाटक देखने गया था - दक्षिणेश्वर में नवीन नियोगी के यहाँ। वहाँ के लड़के बड़े दुष्ट हैं। वे सब इसकी-उसकी निन्‍्दा किया करते हैं। इस तरह की जगहों में भाव रुक जाता है। “उस बार नाटक देखते समय मधु डाक्टर की आँखों में आँसू देखकर मैंने उनकी ओर देखा था। किसी दूसरे की ओर मैं नहीं देख सका।”' (४) समन्वय के बारे में उपदेश। दान और ध्यान श्रीरामकृष्ण - (मणि से) - अच्छा, इतने आदमी जो यहाँ खिंचकर चले आते है, इसका क्या अर्थ? मणि - मुझे तो ब्रज की लीला याद आती है। कृष्ण जब चरवाहे और गौएँ बन गये, तब चरवाहों पर गोपियों का और बछड़ों पर गौओ का प्यार बढ़ गया - अधिक आकर्षण हो गया। श्रीरामकृष्ण - वह ईश्वर का आकर्षण था। बात यह है कि माँ ऐसा ही जादू डाल देती हैं जिससे आकर्षण होता है। “अच्छा, केशव सेन के यहाँ जितने आदमी जाते थे, यहाँ तो उतने आदमी नहीं आते। और केशव सेन को कितने आदमी जानते-मानते हैं, विलायत तक उसका नाम है, विक्टोरिया ने उससे बातचीत की थी। गीता में तो है कि जिसे बहुत से आदमी जानते- मानते हैं, वहाँ ईश्वर की ही शक्ति रहती हैं। यहाँ तो उतना नहीं होता।”” मणि - केशव सेन के पास संसारी आदमी गये थे। श्रीरामकृष्ण - हाँ, यह ठीक है, वे ऐहिक कामनाएँ रखने वाले थे। मणि - केशव सेन जो कुछ कर गये हैं, क्या वह टिक सकेगा? श्रीरामकृष्ण - क्यों, वे एक संहिता लिख गये हैं, उसमें उनके ब्राह्मसमाजी अनुयायियों के लिए नियमादि तो लिखे हैं। मणि - अवतारी पुरुष जब स्वयं कार्य करते हैं, तब एक और ही बात होती है जैसे चैतन्यदेव का कार्य। श्रीरामकृष्ण - हाँ हाँ, यह ठीक है। मणि - आप तो कहते हैं - चैतन्यदेव ने कहा था - “मैं जो बीज डाले जा रहा हूँ, कभी न कभी इसका कार्य अवश्य होगा।' छत पर बीज था, जब घर ढह गया, तब उस




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