हमारी राष्ट्रभाषा | Hamaarii Raashhtrabhaashhaa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
47
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं० धर्मदेव विद्यावाचस्पति - Pandit Dharmadev Vidyavachaspati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
जो लोग झरवी फ्रारसी शब्दों से लदी उदूं को राष्ट्र भाषा
बनाने के पक्षपाती हैं ( जिस दावे की निस्सारता उपयुक्त विवे-
चन से सरवधा स्पष्ट है क्योंकि बंगाली, गुजराती, मराठी, पंजाबी
मारवाड़ी, गुरु मुखी श्ादि भाषाओं का झरबी फारसी व उदू
से कोई सम्बंध नद्दीं ) उनकी झोर से कई बार यह कहा जाता
है कि हिंदी राष्ट भाषा ( कौमी ज़बान ) इसलिये नहीं बन सकती
क्योंकि बद्द सिफं हिंदुओं की ज़वान है पर यह बात भी ऐतिहा-
सिक तथा साहित्यिक दृष्टि से विचार करने पर सबंधा श्रशुद्ध
प्रमाणित होती है । वर्तमान संस्कृतनिप्न॒ हिंन्दी के निर्माण और
विस्तार में सुसलमान लेखकों श्रौर कब्रियों का भी बहुत बढ़ा
भाग रहा है । प्राय: यह माना जाता है कि हिन्दी यद्द नाम भी
मुसलमानों का ही रक्खा हुभ्ना है । मीर खुसरो ने हिन्दी का जो
कोष बनाया था उसमें संस्कृत के कठिन २ शब्द भी पाये जाते
हैं । सय्यद इन्शा अछाखाँ जेंसे कट्टर मुसलमान ने जिस तरह
की भाषा का प्रयोग किया उसके निम्न नमूने ध्यान में रखने
योग्य हैं:--
“सिर झुका कर नाक रगढ़ता हूँ उस अपने बनाने बाले
के सामने जिसने हम सब को बनाया श्रार बात की बात में वह
कर दिखाया कि जिसका भेद किसी ने न पाया ।”
“इस सिर कुकाने के साथ दी दिनरात जपता हूँ उस श्पने
दाता के भेजे हुए प्यारे को जिसके लिए यों कहा है कि “जो तू
न होता तो में कुद न बनाता ।”
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