मानस में रामकथा | Manash Me Ramkatha

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Manash Me Ramkatha by बलदेव प्रसाद मिश्र - Baldev Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ल्म्क मानस में रासकथा रद रामायण का मूठख्रोत किसी ऐसी राम-विषयक गाथा में हो जिससे पश्चिम की 'महदाभारतीय और पूव की बौद्ध जातकीय कथाओं को भी प्रेरणा सिढी हो, परन्तु उस गाथा को सबप्रथम छन्दबद्ध किया है रामायणकारने ही, यह निर्बिवाद जाना जा सकता है। अपने मूलरूप में यह एकदम स्वाभाविक और मानवीय मनोभावों के सबधथा अनुकूल थी । पिता का आदेश मानकर एक राजकुमार बन को जाते हैं । उनकी साध्वी सुकुमारी पत्नी भी उनका साथ देती है। वहां एक प्रभुता-मदान्ध सत्ताधीश उस साध्वी बाला को हर ढे जाता है जिसकी प्रतिक्रिया में वे राजकुमार वन्यों की सहानुभूति प्राप्त करते और उनकी सहायता से ऐसे प्रबठ प्रतिस्पर्धी को भी परास्त करके पत्नी को उन्मुक्त करते और आदेश पूर्ण होने पर पिता के राज्य का उपभोग करते हैं। यही रामायण की मूढकथा है। इस कथा में न तो कोई अस्वाभाविकता है और न कोई अवास्तविकता । अतएब अन्त:साक्ष्य यही कहता है कि आदि रामायण को ऐतिहासिक न मानने का कोई कारण नहीं जान पढ़ता । मानवीय मनोभावों में काम और क्रोध की सबसे अधिक प्रधानता है । राग और ट्ष अथवा आकर्षण और बिकर्षण का इन्द्र तो उस दिन से प्रारम्भ हो जाता है, जिस दिन से किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व बनने ठगता है। जीव अपने को जगत्‌ से मिन्न समझे या न समझे, परन्तु जिस दिन उसमें स्व की, स्वरक्षा की, श्रदृत्ति आई उसी दिन से उसका यहद दन्द्र प्रारम्भ हो जाता है। मुर्गी का बच्चा पेदा होते ही दाने की ओर आकषण दिखायेंगा




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