भारतीय संस्कृति को गोस्वामी तुलसीदास का योगदान | Bharatiya Sanskriti Ko Goswami Tulsidas Ka Yogdaan
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१० )
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(रजिसनें ललितदकलाएं भी सस्मारूद है) सराचार, स्वास्थ्य [अस, चस्त्र
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घ्यवहार में उन्हें ही “लोक कल्याण” कह लोजिये। अतएवय लोक कल्याण
की दृष्टि से सम्माधित हुई अन्तबध्ि का नाम समशिये--संस््खाति।'
प्रात है वर्साणिक वाली वाणी का नाम, और संस्कृत है उसकी
परिपाधजित अवस्था । इसी प्रकार प्रकृति हैं चेसगिक म्रेरणाएं या घ्रव तिथां
जर संस्कृति है उनकी परिमाजित अवस्था । चाणी को अभिन्न सम्यस्थ
हूं समाज से। उसी प्रकार संस्कृति का भी अधिन्न संबंध है समाज से ।
आत्मकत्याण की दृष्टि से जिसे घील या चारिन्य कहते हैं जन-कल्याण या
रिदवकल्याण की दृष्टि से उसको कहा जा सकता है संस्क्वसति, य्यपि थटट
उवरय हू कि संस्कृति अधिक व्यापक दाब्द हू सीर उततमें ससिरुखि आदि
का भी समावेश है ।
कुछ लोग कृति से संस्कृति का सेल उठा कर सस्यक प्रकार की कृति
को 'संस्कति' कह देते हूं। उनके विचार से व्यबित अथवा समाज के सम्पूर्ण
न
जीवन को प्रत्येक दिशा को सम्यक कृति का साथहिक नाम हुआ संस्कृति ॥
स्थित
नकल न
ठुर्स १९
लि सें संस्कृति के साथ सु और कु का कोई जेद ही नहीं रह जाता,
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दर्योंकि सैम्यक् छति सदेय सु ही रहेगी परतु व्यवहार में सुसंस्कार और
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गथ्र एक नि सरल सादे | स्कस का कप प़्य लग भय
फुलस्सार को तरह युसंस्कृति और कसंस्कृति का भी प्रयोग होता ही है ।
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र्फि स््कयुर बे स्कर बप्सपच मिल ियड्य स् स् ईद धर म्स हर स्पा ध्स गा दे य रा रू हे सा कि
सर, सस्कञात का नहीं रकस्तु अम्तःकरण को स्थिति बिदेष है। अतः
यह परिभावा स्ीचीन नहीं जान पड़ती ।
गसंत्कृति को साववय समदाय की अन्त: प्रतिभा की बॉस
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