भारतीय संस्कृति को गोस्वामी तुलसीदास का योगदान | Bharatiya Sanskriti Ko Goswami Tulsidas Ka Yogdaan

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Bharatiya Sanskriti Ko Goswami Tulsidas Ka Yogdaan  by बलदेव प्रसाद मिश्र - Baldev Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१० ) जय बजे नद्य का फ्छ बयजनपसये कक हश जहा छ्ं बलस्च्ण द जकककाध नाथ श्र पल महा सखय से झामरा: सच हू ध्दाइ्य्डा, श्र १९ सदी । से सेन, साधना न न एन न थार न उपनाम मूक ठप बने (रजिसनें ललितदकलाएं भी सस्मारूद है) सराचार, स्वास्थ्य [अस, चस्त्र गण चु्ण्मुरप, का कनक गए न्फ् | 9७६ सेवा बल, उन्याी: रे प््य्प खुअ! क स्ट् स्यूँप चफन झा कहा, न पम्म्् अपन रकम व गह आदि) समाद्ध और सेवा (कुड्स्स सेवा, सयाज सेवा, लोकसेया आदि) ही न शर कार अन्य:ञ्रणाड ) ५ रागाउिझगा पर पर पुर सा रच (घयसक सना अकार का अन्त:त्रणाडा का यरमाजत रियल का सामाहक फ श्स्पे कि हि ण् शव [पक की भर जज डा, ,चश, हु उ अन्य छक्का नासा हू सश्क्ात । यह पारस स्घसाशार्कार कर, महा साक्षात्कार द्यं किंग, ले रन किक योर! ता एफ स मु ध हुनर श््य्प्या सह के ना डर सु दब: । ट्ट कक न इप् कै गे 947, साच्सूदायष्द साकाहवार दही, हें दिव सम्दर के साकार्कार थ ् पे यु श्ल्स ७ व पद्म पु कर न एए ही जआावस सान कर रवदा जाता हू । चश्तुत: थे सब आदर एक हु हू गश्स्लु घ्यवहार में उन्हें ही “लोक कल्याण” कह लोजिये। अतएवय लोक कल्याण की दृष्टि से सम्माधित हुई अन्तबध्ि का नाम समशिये--संस्‍्खाति।' प्रात है वर्साणिक वाली वाणी का नाम, और संस्कृत है उसकी परिपाधजित अवस्था । इसी प्रकार प्रकृति हैं चेसगिक म्रेरणाएं या घ्रव तिथां जर संस्कृति है उनकी परिमाजित अवस्था । चाणी को अभिन्न सम्यस्थ हूं समाज से। उसी प्रकार संस्कृति का भी अधिन्न संबंध है समाज से । आत्मकत्याण की दृष्टि से जिसे घील या चारिन्य कहते हैं जन-कल्याण या रिदवकल्याण की दृष्टि से उसको कहा जा सकता है संस्क्वसति, य्यपि थटट उवरय हू कि संस्कृति अधिक व्यापक दाब्द हू सीर उततमें ससिरुखि आदि का भी समावेश है । कुछ लोग कृति से संस्कृति का सेल उठा कर सस्यक प्रकार की कृति को 'संस्कति' कह देते हूं। उनके विचार से व्यबित अथवा समाज के सम्पूर्ण न जीवन को प्रत्येक दिशा को सम्यक कृति का साथहिक नाम हुआ संस्कृति ॥ स्थित नकल न ठुर्स १९ लि सें संस्कृति के साथ सु और कु का कोई जेद ही नहीं रह जाता, ने दर्योंकि सैम्यक्‌ छति सदेय सु ही रहेगी परतु व्यवहार में सुसंस्कार और के गथ्र एक नि सरल सादे | स्कस का कप प़्य लग भय फुलस्सार को तरह युसंस्कृति और कसंस्कृति का भी प्रयोग होता ही है । १ भ्झ रा कि र्फि स्‍्कयुर बे स्कर बप्सपच मिल ियड्य स् स् ईद धर म्स हर स्पा ध्स गा दे य रा रू हे सा कि सर, सस्कञात का नहीं रकस्तु अम्तःकरण को स्थिति बिदेष है। अतः यह परिभावा स्ीचीन नहीं जान पड़ती । गसंत्कृति को साववय समदाय की अन्त: प्रतिभा की बॉस ८्उी ध्द थ शं.




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