प्रदीप | Pradeep

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Pradeep by पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट किसी भी. साहित्यिक-म्रन्थ की समीक्षा दो श्रकार से की जा सकती है--एक तो कला की ट्ष्टि से ओर दूसरे इतिहास की द्ष्टि से । कला .की दुष्ट से विचार करने पर कोई ग्रन्थ स्वयमेव परे ज्ञात होता है | कला की दृष्टि से हम' अन्य के शझंतर्गत सुलभाव को, वाह संसार पर द्रष्टि-निक्षेप किये बिना ही, समक सकते हैं । उस समय कवि की सृजन-शक्ति पर ही हमारा ध्यान रहता है । परन्तु ऐतिहासिक रीति से जब हम उस पर विचार करेंगे तब हम उस अन्थ की सुलभावना में भी कार्य-कारण - का सम्बन्ध देख सकेंगे । तब हमें कवि के व्यक्तित्व के साथ ही साथ तत्काठछीन समाज की स्थिति पर भी विचार करना पड़ेगा, क्योंकि उसी स्थिति में रहकर कवि के व्यक्तित्व क्रा विकास हुआ है ।




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