नटो तो कहो मत 1 | Nato To Kaho Mat 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर दीं नकद ब् गा [ २ 1 [क' बुद्धिमान श्रौर कौन होगा ? श्राप ही उस शिव-मन्दिर पर भाें 5गा गये तो दुगना जेबर ले लुगा अर यदि बिन ठगाये लौटे ९ जेवर आपका होगा ।”' पुरोहित ने सरदार की दातें मान ली श्ौर बहु एक ऊंट पर सब। 'र शिव-स्दिर को रवाना श्ा। सार्दिर के पास पहुँचा तो सा री ठग ने प्रावाज दी ।. पुरोहित से ऊँट को श्रलग बिंठा दिए ' स्ववं ठग के पास जा बेठा । जेवर देखकर ठग ने सोचा--'शझा डा शिकार फँसा है । बड़े प्रम से बहु पुरोहित के साथ बातें करः १ सन्ध्या होते ही उसने पुरोहित को झपना नियस सुनाया हित ने उत्तर दिया--मुक्ते रात में दिखाई सहीं पड़ता, इसलि रात भर यहीं ठहरूंगा । ठग ने कहा--एक शत पर तुम य। 7सकते हो । मै जो बात कहूं, उसे तुम सुनी श्रौर यदि लुम < वो कि 'यहू भी कोई होने की बात है !' तो सै तुम्हारा सब कु लू ।” पुरोहित ने कहा--“वुम्हारी बातें तो मुक्त स्वीकार है ५ । भी यह दाल होगी कि मैं भी एक बात कहूँ सौर थदि सुनकर तुम [कि 'यहू सी कोई होने की बात है !” तो मै तुम्हारे पास मत्दिर कुछ है, सब ले जाऊँ ।” ठग ने शर्त मंजूर कर ली । ठग ने बात कहना शुरू किया--“एक बार मैंने ५०० रुपयो में ए था कट खरीदा झौर उस पर सवार होकर ससुराल गया । जब | पहुँचा, मेरे ससुर, साले श्रौर ससुराल को शियाँ सब खेत काटने थे। कटे गेहूं का ढेर खेत के बीच से लगा हुआ था । मै पढुँ उन लोगों ने काम बन्द कर दिया, मेरे पास झा बेठे श्रोर बातें क कि कि ७... के के, हु... _. कं. है भा गनिनगा ए नि नि... के...




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