राजस्थान के ऐतिहासिक प्रवाद | Rajsthan Ke Etihasik Pravaad

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Rajsthan Ke Etihasik Pravaad by कन्हैयालाल सहल - Kanhaiyalal Sahal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिलते हैं। वे भी वहुधा वीररसपूर्य हैं ओर इतिहास के लिए गीतों के समान ही उपयोगी हैं ৩ इस पुस्तक में छप्पप और गीतों के खूप में प्रचलित छदं अनश्रुतियों का उल्लेख अवश्य हुआ है किन्तु अधिकांश प्रवाद दो हात्मक हैं। इसका मुख्य कारण है कि दोहा सानी से चाद हो जाता हैं तथा राजस्थानी यातों व ख्यातों में भी चीच बीच में श्रनेक दोहे मिलते ই। एक वात का सष्टीकरणं आवश्यक है। पुस्तक का शोपक 'राजस्थान के ऐत्तिहासिक ग्रवादः रखा गया ह किन्तु कुछ पेते भी प्रवाद इसमें आगये हैं जिनका सीधा संत्रन्ध राजस्थान से न॑ होकर गुजरात अथवा सिनन्‍्य आदि भारत के इतर प्रान्तों से हैं । प्रवदात्मक पद्मों के डिंगल भाषा में तिर्मित होने तथा राजस्थान में अत्यधिक प्रचलित होने के कारण ये प्रवाद भी सहज ही इस पुस्तक में स्थ/न पा गये हैं। यह भी संभव दो सकता है कि किसी ' किसो प्रचाद में ऐतिहासिक तथ्य उतना न हो अथवा कोई श्रवाद एतिहासिक घटना के अतिकूल ही पड़ता हो किन्तु संस्कितिक दृष्टि से ये श्रवाद महत्वपूर्ण हैँ और लिपिवद्ध करने के योग्य हैं- समव॒तः इस विषय सें दो सत न होंगे। प्रवादों के संग्रह करते समय में ऐसे लोगों के भी सम्पर्क में आया डोज.” পপ ০০০5 গ হাজবুলনি ছা হিছা ( पदो जिन्द्‌ प्र: २६ 9




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