हंस - मयूर | Hans-mayoor
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द परिचय
हो, एक या आषे ने पढ़ा होगा । तो मुकको एक चिनौती मिली-इम
ऐतिशसिक चित्र बनाने में यदि इतिहास का नाश करते हैं तो झाप टी
एकाघ नाटक लिखिये । उस चिनौती का उत्तर यह नाटक है । परन्दु मैं
इस बातको मानता हूँ कि यह नाटक उनके लिये नहीं लिखा गया हे,
क्यों कि उन लोगों के स्टूडियो ऐसे नगरों में हैं जहा बड़े बडे पुस्तकालय
हैं शरीर जिनमें इतिहास सम्बन्धी पुस्तकें पर्याप्त संख्या में हैं तथा विचिन्नालय
(0 प5८प0) मी । विचिन्रालय तो सहज ही देखे जा सकते हैं श्रौर चिन्ननिर्मा-
ता उन्हें देखने का कष्ट भी करते हैं, परन्तु ।पुस्तकालय १ पुस्तकालय में
सिरखपी कौन करे ? ये जानते हैं कि दमारी झधिकाश जनता को अपने
इतिहास श्रौर पुरानी संस्कृति का यथेष्ठ परिचय नहीं है । इवलिये उस जनता
के इस श्रज्ञान का वे लाभ उठाते हैं । परन्तु वह समय निकट है जब
चित्रनिमांता उस श्र्ञान का सहज लाभ प्राप्त नहीं कर सकेंगे ।
मैंने 'इंस-मयूर” नाटक की ऐतिहासिक प्र्ठभूमि पर 'प्रभावक चरित्र”
वर्णित कालकाचार्य कथानक का उपयोग किया है ' जान पढ़ता है इस
से लगभग ७५ व पूवं मालकगणुतन्त्र की श्रव्यवस्था ने पहले राजन्य
और फिर राजा को उत्पन्न किया । ग्देभिन्ल इसी प्रकार का राजन्य या
राना था। सरस्वती ( नाटक की सुनन्दा ) के साथ गदंभिल्ल का बलात्
विवाद मुझको मान्य नहीं है, परन्तु ग्दंभिल्ल के प्रणय ने जो रूप या मांगे
लिया होगा उसके सम्बन्ध में कालकाकाय को अम होना स्वाभाविक श्रौर
उसके स्वाभाव के संगत जान पढ़ता है । नाटक में इसी श्रम का समथंन
है । कालकानाय ने झपने स्वभाव का जो परिचय नाटक के दूसरे दृश्य
में दिया है वदद इतिहास सम्मत है । ( जायसवाल का 'हिन्दू राज्य तन्त्र
श् ५२ ) कालकाचाय ने शको को लाकर उज्लेन श्रौर 'मालव जनपद
का नाश कराया, उसके लिये दो उपादान ग्राह्म हैं>-एक तो उत्तम भद्रों
श्रौीर मालव-यौधेयों का बेर, जिसका सकेत उपवदात के नासिक गुफा
वाले शिलालेख में हैं; दूसरा कालकाचाय की प्रतिहिसा, जो गर्दमिल्न-
सुनन्दा के प्रशय-भ्रम से उत्पन्न हुई थी । शकों की विजय के परिणाम
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