हिंदी साहित्य : कुछ विचार | Hindi Sahitya Kuchh Vichar

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Hindi Sahitya Kuchh Vichar by प्रेमनारायण टंडन - Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(. ६. को यह प्रारंमिक रूप भी मधुरता के लिए प्रसिद्ध हों चला था श्रौर इसका यह गुण मारतीयों को ही नहीं, विदेशियों को मी श्राकृष्ट करने में सहज ही समर्थ हो गया था | यों तो सभी व्यक्तियों को श्रपनी मातृमापा मधुर लगती है; परंतु वस्तुतः किसी भाषा की मधुरता तभी सर्वसिद्ध कही जायगी, जब उसके लिए शंत्मीयता की भावना न. रखनेवाले परिचित श्रक्शों में भी उसकी सामान्य शब्दावली रस घोल सके; जैसे कोकिल की काकली उससे सर्वथा श्रपरिचितों को भी रस-मग्न कर देती है । “माय री माय, सुँकरी गलिन पग कौँकरी गखु हैं”--जैसी मधुर और सुकुमार उक्ति झ्रबोध ब्रजबालिका के मुख से सुनकर, श्रज की बोली का माधुय परखने श्राया हुश्रा, फारसी के झदूसुत माघुर्य पर मुख, इस भाषा का परम विद्वान श्रलीहजी' पूर्णतया संतुष्ट होकर, यह कहता हुआ लौट गया कि ऐसी सरत श्रौर सौकर्ययुक्त भाषा की श्रप्रतिम माघु्य प्रदान करने में तो सामान्य कवि भी सहज ही सफल हो सकते हैं, फिर महाकवियों का तो कहना ही क्‍या है | दूसरी बात यह कि संप्रदाय-विशेष से संबंध न स्खनेबाले पूर्वागत शधना नवागत श्रमारतीयों ने जब ज्रजभाषा में ही कोन्ब-स्तना श्ारंभ की, तब स्पष्ट है कि वे उसकी किसी विशेषता पर ही रीके होंगे और इस भाषा की यह विशेषता, स्थूल रूप से, इसकी मधुरता ही हूं सकती है | ब्रजमांषा की उक्त विशेषता, जो शोरमेनी प्राकृत की श्रनुपम देन मानी जाती है, यदि सहज श्र स्वाभाविक न होती तो महाकत्रियों के लिए; भी उसे सभी हृष्टियों से श्रादर्श भाषा बनाना संभव न होता; क्योंकि वाह साज-सजा से श्ररलकृत होने पर कुरूप प्राणी केंसा भी श्राकर्षक हो जाय, सहज सौंदर्य की समता वह कदापि नहीं कर सकता | यों तो संस्कृत भाषा की मधुस्ता भी बहुत बढ़ी-चढ़ी है, परंतु शौरमेनी की जिस मंघुरिंमा की प्रशंसा स्वयं संस्कृत के कवियों ने की हो, निस्संदेह वह श्रेनुपम ही कही जायगी । परंपरा से प्राप्त इस मध को बढ़ाने में त्रजप्रदेश की नेस्गिक तथा सामाजिक स्थिति ने भी पर्याप्त योग दिया । यमुना-किंनारे की कंजों और गिरि गोवरद्धन 'के हरे-मरे बन-उपवनों की प्राकृतिक रमणीयता के मध्य में पलनेवाले मानव-समाज की सौंदर्य-प्रिंयता-वृतति कि पा 4 # 2 मधका 00. न अब ऋड+ न बह कमनतद वीपलिमेकमिपकफंनिकरन ैकेलकिलिनकफतग्रनियों: १. पुरे दिल्ली श्र ग्वालियर बीच श्रजादिक देस । 'पिंगल उंपनासक सिरा तिनेकी मधुर जिंसेस ॥ -ुयमत्त ।




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