गल्प - संसार - माला भाग - 2 गुजराती | Galp - Sansar - Mala Bhag - 2 Gujarati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कन्हैया मुंशी ] ७: [ गल्प संसार माला
'यही पचास समझ कीजिये--एक-दो साक्ष इधर या उधघर ।
ध्रापको पता नही , सेठजी के पिता साठवें में ब्याहे थे ।'
मेंने सोचा-- साँव्ञशाइ भी अपने बाप की बराबरी दी कर नहीं
पाये--सवाई क्या करेंगे है लेकिन, इंश्वर न करे, कही इस पाँचवी
श्ोरत को भी कुछ हो गया, तो श्पने पुरखों की प्रतिष्ठा को कायम
रखने के ल्िए सेठ सवाई बनने से चूकेंगे नहीं ।
मेंने फिर पूछा--भल्षा दुलहिन की क्या उमर होगी ?
वह बोले -यद्दी पॉँच-छः साल समसिय्रे । इसी गाँव के एक
देसाई की लकी है । बड़े खानदानी लोग हैं ; परिवार भी ख़ासा
बड़ा हे ।
सुनकर मेंने कहा -श्रच्छा । श्रौर चुप हो गया । मकान पर श्ाऊर
हमने कपड़े बदलने । गले में दुपट्टा डाला श्रोर बाराती की शान से
सेठ के बंगक्षे पर पहुँचे । देखते क्या हैं, कि बारात की तैयारियों ढो
रददी हैं । बेरडवाले मनमाना बजा रहे हैं--शोर इतना है कि कान-पढ़े
सुनाई नहीं देता । पोशाक उनकी निराली है । कद्दी' नीज्ञाम में किसो
नाटक कम्पनी की पुरानी खोटी ज्री की पोशाक ख़रीद की थी ; इस
समय वही शान से पढने खड़े हैं । श्रोर समभते हैं कि बस हमीं इम
हैं । दूसरी श्रोर देशी बाजा बज रहा था । झाठ-दस ताशेवाले श्पनी
घुन में मस्त बजा रहे थे । दो दिजड़ें शद्ननाई की तीस्खी भावाज़ के
साथ ताक्षियाँ पीटकर नाच रहे थे । क्लोगों की भीड़ भी उसी तरफ
ज़्यादा थी । मैंने सोचा, मारा स्वदेश-प्रेस भी जीता-जागता है --
इम श्रपने ही संगीत पर श्राज भी मुग्ध हैं । इतने में पास खड़े हुए
एक सजन ने कहा--शाबाश ! सेठ सादब, शाबाश ! शादी इसे कहते
हैं। जनाब, चालीस कोस से ये दिजड़े बुल्नाये गये हैं ।
सेठ के बैंगले के सामने एक छोटा-सा चोक था ; शोर चोक की
इचा नाना प्रकार के तार-मन्द्र स्वरों से गू.ज रद्दी थी । दोनो तरफ दो
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