गल्प - संसार - माला भाग - 2 गुजराती | Galp - Sansar - Mala Bhag - 2 Gujarati

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Galp - Sansar - Mala Bhag - 2 Gujarati by रामनारायण विश्वनाथ पाठक - Ramanarayan Vishvanath Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कन्हैया मुंशी ] ७: [ गल्प संसार माला 'यही पचास समझ कीजिये--एक-दो साक्ष इधर या उधघर । ध्रापको पता नही , सेठजी के पिता साठवें में ब्याहे थे ।' मेंने सोचा-- साँव्ञशाइ भी अपने बाप की बराबरी दी कर नहीं पाये--सवाई क्या करेंगे है लेकिन, इंश्वर न करे, कही इस पाँचवी श्ोरत को भी कुछ हो गया, तो श्पने पुरखों की प्रतिष्ठा को कायम रखने के ल्िए सेठ सवाई बनने से चूकेंगे नहीं । मेंने फिर पूछा--भल्षा दुलहिन की क्या उमर होगी ? वह बोले -यद्दी पॉँच-छः साल समसिय्रे । इसी गाँव के एक देसाई की लकी है । बड़े खानदानी लोग हैं ; परिवार भी ख़ासा बड़ा हे । सुनकर मेंने कहा -श्रच्छा । श्रौर चुप हो गया । मकान पर श्ाऊर हमने कपड़े बदलने । गले में दुपट्टा डाला श्रोर बाराती की शान से सेठ के बंगक्षे पर पहुँचे । देखते क्या हैं, कि बारात की तैयारियों ढो रददी हैं । बेरडवाले मनमाना बजा रहे हैं--शोर इतना है कि कान-पढ़े सुनाई नहीं देता । पोशाक उनकी निराली है । कद्दी' नीज्ञाम में किसो नाटक कम्पनी की पुरानी खोटी ज्री की पोशाक ख़रीद की थी ; इस समय वही शान से पढने खड़े हैं । श्रोर समभते हैं कि बस हमीं इम हैं । दूसरी श्रोर देशी बाजा बज रहा था । झाठ-दस ताशेवाले श्पनी घुन में मस्त बजा रहे थे । दो दिजड़ें शद्ननाई की तीस्खी भावाज़ के साथ ताक्षियाँ पीटकर नाच रहे थे । क्लोगों की भीड़ भी उसी तरफ ज़्यादा थी । मैंने सोचा, मारा स्वदेश-प्रेस भी जीता-जागता है -- इम श्रपने ही संगीत पर श्राज भी मुग्ध हैं । इतने में पास खड़े हुए एक सजन ने कहा--शाबाश ! सेठ सादब, शाबाश ! शादी इसे कहते हैं। जनाब, चालीस कोस से ये दिजड़े बुल्नाये गये हैं । सेठ के बैंगले के सामने एक छोटा-सा चोक था ; शोर चोक की इचा नाना प्रकार के तार-मन्द्र स्वरों से गू.ज रद्दी थी । दोनो तरफ दो




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