विज्ञान परिषद का मुखपत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhapatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् विज्ञान परमारुवीय शक्ति को लीला ही तारागणों की ज्योति तथा सयं के प्रकाश व उष्मा का कारण है । . नई खोज लाड रद्रफार्ड ने तत्वों को एक दूसरे में बदलने में सफलता प्राप्त की । इस खोज की सहायता से ब्रिटेन के ज्योतिर्विंद्‌ (एसट्रोनोमर) सर श्राथर एडिग्टन, भौतिक विज्ञानविद आर. एटकिंसन और जमंनी के भौतिक विज्ञान वेत्ता एफ० होटमन्स ने सय या -तारागण के . त्न्तकरण की स्थित का शोध काय॑ श्रारम्म किया । एटेकिंसन श्रौर होटमन्स के , काय से सन्‌ १६२६ में यह ज्ञात हुआ कि तारागणों में उच्च ताप श्र भारी दबाव के कारण उनके इल्के तच्त्रों के केन्द्रकों में बड़े वेग से क्रिया: होती . है, जिसके कारण ताप श्र प्रकाश उत्पन्न होता है । हे ... सय के वाह्य तल पर ६००० सेन्टीऑ्रेड तापमान होने का प्रमाण पाया जाता है । स्थिति, दबाव, गर्मी श्ादि के श्रध्ययन से कहा जा. .सकेतां है किं ताप के क्रमशः बढ़ते रहने के कारण सय के मध्य केन्द्र पर हमें दो -करोड़ अंश सेन्टीग्रेड तापमान होना ज्ञात होंता है श्रौर सयः के बृदृदाकार. होने के कारण दंबाव भी हमारे एक ब्रंब साठ लाख वायुमंडल के दबाव के बराबर होगा । सूय में सदख्र गुना अधिक चमक वाले के केन्द्रीय भाग का तापसानं- ३े करोड़ से० भ्रे० होने का अनुमान हैं और धैँधलें दिखाई पड़ने वाले तारे के केन्द्र भाग में भी श्के-करोड़ से० तापमान होने को अनुमान है । इससे ज्ञात होता हैं कि सब झ्राकाशीय: पिर्डों ..के केन्द्र भाग लसभग, एक समान प्रचन्ड तापमान पर हों सकते हैं । इतनी भारी गर्मी से क्या परिणाम होते होंगे, इसको रोज भी की गई है रहस्य सय श्रौर तारागणों के प्रचन्ड ताप का रहस्य परमारुवीय शक्ति है । श्राधुनिक खोजों से यह जात हो सका है कि सम्पूण सूय॑ पिंड का ६८३ प्रतिशत हाइ ड्रोजन तत्व ही है श्रौर शेष अंग में ही अन्य लत्व हैं । [_ '्रक्टूबर हाइड्रोजन का नाभिक एक धनारु वाला सृष्टि का सबसे सरल रूप का लत्व है श्रौर उसी नामिक के भिन्न मिन्न संयोग से अन्य तत्वों की रचना हुई है । अधिक मात्रा में हाइड्रोजन होने का फल हम सृय की अग्नि लीला में द्ाईड्रोजन का भाग लेने में देख सकते हैं । गणना से मालूम किया गया है कि यदि चार हाई- ड्रोजन परमाणु मिलकर एक हौलियम नाभिक (२ प्रोटीन - और २ न्यूट्रान) बनाते हैं तो एक झॉंस हाइड्रोजन से १६००० श्रश्व शक्ति उत्पन्न हो सकेगी जो ३०० दिनों तक निकलती रहेगी । इस क्रिया में एक प्रतिशत”मात्रा लोप.हो जाती है और यही मात्रा शक्ति में बदल जाती है । इस प्रकार प्रति सेकिन्ड ४० [लाख टन मात्रा सय' « में लोप होती रहती है श्रौर विकराल शक्ति. में बदलती रहती है । सूय में हीलियम के बनने. की क्रिया को निम्न रूप से समझा जा सकता है :-- इस वाद (7८०१४) को : १९.३६ में ..वीथे तथा वीत्वैकर ने दिया था । कार्बन परमाणु के नार्भिक पर हाईड्रोजन के नामिक प्रोटान वेग पूरण प्रहार करते हैं । इस क्रिया में काबंन नाभिक से एक हाईड्रोजन नाभिके का संयोग होता है और १३ केन्द्रकार (७ प्रोटान श्रौर ६ न्यूट्रान ) का .श्रस्थाई ( एएश502016 ) परमाणु बन जाता है जो पोजीट्रान निकलकर स्थायी ६ प्रोटान श्र न्यूट्रान का परमाणु बनाता है जो काबन का सस- स्थानीय.( आइसोटोप ) होता है । उधर फिर एक प्रोटान आ. घमकता है । अब यह नया परमारणु १४ कण का हो जाता है । जिसमें ७ प्रोटान और +७ न्यूट्रान होते हैं और नाईट्रोजन नाम का स्थाई परमाणु बन जाता हैं । इस नाईट्रोजन परमारणु का फिर एक प्रोटान से संयोग हो जाता है। शब यह श्रस्थाई रूप का १५ कण ८ प्रोटान और ७ न्यूट्रान का स्थायी रूप का झाक्सी- जन परमारु होता है जो एक पाजीट्रान के निकलने से १५. कण (७ प्रोटान श्र ८ न्यूट्रान) वाला स्थायी नाइट्रोजंन परमार बनाता है। इसमें एक प्रोटान के प्रहार करने पर खंडन होकर दो टुकड़े हो जांते हैं, एक




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