अम्बपाली | Ambapaali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ७. |
सड़कों पर कॉोलाहल था । लोग दुकानें सजा रहे थे ।
श्रेष्ठि ्यौर निगम की शोर से स्थान-स्थान पर द्वार खड़े किये
गये थे । प्रत्येक द्वार पर एक विशेष प्रकार की कला का प्रयोग
किया गया था । बडढकों की भेणी का द्वार लकड़ी का था;
थपतियों की श्रेणी का द्वार सुन्दर पत्थर का, कम्मार श्रेणी का
घातु का श्ञौर इसी प्रकार । तोरणों, बन्दनवारों और मधुघटों
से सारा नगर एक अभिनव-वस्तु बन गया था |
सहसा भीड़ में हलचल हुई । लोगों ने माग छोड़ दिया
ओर किनारे हो गये । सेनानी की एक प्रधान अपने सफ़ेद घोड़े
पर चढ़ा हुआ उधर से गुजरा था ।
उसने एक छोटा सा चाँदी का तूये निकाल कर बजाया ।
जनता उत्सुक होकर उसके पास बढ़ने लगी । उसने चिल्ला
कर कहा -- “नागरिकों, एक आर हो जाओ । अभी परिषद
इधर से आती है । वे लोग हिरण्यगभ के मंदिर की ओर
जायेंगे । उन्हें कोई असुविधा न हो । सावधान !”
और वह आरे बढ़ गया |
जनता फिर सिमट आई | राजपथ फिर नरमुंडों से भर
गया । फिर वही कालाददल, नही भाग-दोड़ ।
एक भिन्नु-श्रमण इधर से जा रहा था । उन दिनों वेशालली
के बाहर आचाय प्रबुद्धकेतु ने एक बोद्ध संघाराम की स्थापना
कर दी थी आर बौद्ध मिक्लुक जनता के लिये नितांत झ्ाश्चये
की वस्तु नद्दीं रद्द गये थे । परन्तु उनक विषय में लोगों की
जिज्ञासा अधिक जागृत नहीं थी । गणतंत्र होने के कारण
जनता राजनीतिक अधिकारों और सांसारिक सुखों की प्राप्ति
के लिये अधिक सतक थी । उसे यज्ञों और ऋणों में विश्वास
थ। । वेशाली में इस एक हिरण्यगभ के मंदिर के अतिरिक्त
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