पद्य - पयस्विनी - प्रवाह अर्थात पद्य - पयस्विनी की सर्वश्रेष्ठ कुंजी | Padya - Payaswini - Pravah Arthah Padya - Payaswini Ki Sarvashreshth Kunji
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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४, बृर्ठ कबहु' न'*'”' घरा सरीर ॥
परिचय--इस दोद्े में कबीर सब्जनों के निःस्वाथ झऔर परोप”
कारी साव का वणन करते हैं ।
शब्दार्थ--चृच्छन्यत्त । कबदु कभी । संचेनसंग्रद करती है ।
परमाथेनपरोपकार । कारनेललिए, कारण से।... /
'अथे--चूक्ष ( स्वयं ) कसी ( '्पने ) फल नहीं खाते श्रौर नदी
( अपने लिए कभी ) जल का संग्रइ नहीं करती । कपीरदास कहते हैं
कि ( चस्तुतः ) परोपकार के लिए ही साघु पुरुषों ने शरीर घारण
किया हुआ दोता दै । श्र्थात खब्जन परोपकारी लोग दूसरे के भले के
लिए घन आदि का संपरद्द करते हैं, उनका जन्म परोपकार के लिए ही
दोता है ।
है, जाति न पूछो ' '* * ' दो स्यान ॥
परिचय--इस पथ्य में कप्रीर साधु के ज्ञान की श्रशंसा काते दैं।
शब्दाधे--साघन्साधु | तरवार-तलवार 1
अथ--( कबीर कहते हैं ) साधु की जाठि न पूषठिये, उसका
ज्ञान पूछु लीजिये, तलवार का मोल करो (जो श्रसलों चोज़ है )
उसको म्याव को एक ओर पढ़ा रहने दोजिए । ध्रर्थाठ जेमे तलवार
की क्रीमत उसके म्यान के कारण नहीं होती; प्रद्युत तलवार के कास्ण
होती है, इसी प्रकार साधु का मूक्य डसकी जाति के कारण नहीं,
बढ़िक उसके ज्ञान के कारण दे | अतएव साधु की जाति से कोई
वार्ता नददीं, उसके जान से होना चाहिये ।
७, साधु ऐसा चाहिए” * ' ”*'“बगीचा साँहिं ॥
परिचय--इस पय में कबीर साधु की नित्संग दशा ( अ्रक्नग
रदने की दशा ) या किसी को दुग्ख न देने की यृत्ति का वसग
करते दें । ही
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