जैनेन्द्र के उपन्यासों का मनोविज्ञानपरक शैली - तात्त्विक अध्ययन | Jainendra Ke Upanyaso Ka Manovigyan Parak Shaili Tattvik Adhyayan

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Jainendra Ke Upanyaso Ka Manovigyan Parak Shaili Tattvik Adhyayan by लक्ष्मीकान्त -Laxmikant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन किसी भौ जीवित साहित्यकार पर शोष-काय करना खतरे से खाली नहीं है, क्योकि उसकी साहित्य रचना का करम भ्रागे भी चलते रहने कौ सभावना है ५ ऐसी स्थिति म हम झपने निणुया को आततिम रूप नही दे सकते । पहले अनुसधान के क्षेत्र मे यह मायता थी कि तीन सौ बप पुराने साहित्यकार पर ही शोधकाय हो सकता है | इस मा-्यता को बतमान युग ने भुठला दिया है और अर ऐसे सभी साहित्यवारो पर दाघ-काय सम्पन्त होने लगा है, जो परि पबव॒ता एवं विकास की चरम सीमा को स्पटा कर चुके हैं । चूकि जनेद्ध भ्रव इस स्थिति में झा गये हैं इसलिए उन पर शोघ-काय वरना मुझे सवतोभावेन समीचीन ही प्रतीत हुआ । यो भी जनेद्र-साहित्य पर लगभग एक दजन से ऊपर पुस्तकें निकल चुकी हैं। उनके उपयासो की विस्तार से प्रनेक प्रवधा मं चचा हुई है । সন ध्रावश्यक्ता इस बात की थी कि उनके उपयासां पर एक ऐसी इप्टि से अनुसघान क्या जाये जो उनका सर्वाधिक सबल श्रश समभा जाता रहा है। मनोविज्ञानपरक शलीतात्त्विक अध्ययत के संदभ में मैन जनेद्र के उपयासो पर एक विश्येप रष्टिकोण से शोघ-काय सम्पन्त क्या है । यही इस भ्रनुसधान की इयत्ता है और यही इसका झौचित्य 1 जने द्र के उपयासो का मनोविचानपरक शलीताच्विक भध्ययन' नामक मह्‌ प्रवध मैंने डा० विश्वम्भरनाथ उपाध्याय के निरीक्षण मे रहकर प्रस्तुत क्या है । निरवेयक्तिक विषय प्रतिपादन तया तय्यपरकं भ्रनुस धान कं जो प्रतिमान उहोंते मेरे सम्मुख रखे थे उनका यथात्रवय परिपालन करन की मैंने चेष्टा की है । विषय की रूपरेखा और पल्लवन की प्रक्रिया के लिए मुझे डा० सत्येद्ध का माग निर्देशन प्राप्त हुआ है, जिनके प्रति झ्राभार प्रकट करने के लिए मुझे कोई शद सश्षम प्रतीत नही हो रहा । श्रवध म मुझे दो घोडा पर सवारी करनी पडी है “मनोविज्ञान और झली-तत्त्व 1दो घांडा की सवारी का परिणाम




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