पद्य - पयस्विनी - प्रवाह अर्थात पद्य - पयस्विनी की सर्वश्रेष्ठ कुंजी | Padya - Payaswini - Pravah Arthah Padya - Payaswini Ki Sarvashreshth Kunji

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Padya - Payaswini - Pravah Arthah Padya - Payaswini Ki Sarvashreshth Kunji by लक्ष्मीकान्त -Laxmikant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) ४, बृर्ठ कबहु' न'*'”' घरा सरीर ॥ परिचय--इस दोद्े में कबीर सब्जनों के निःस्वाथ झऔर परोप” कारी साव का वणन करते हैं । शब्दार्थ--चृच्छन्यत्त । कबदु कभी । संचेनसंग्रद करती है । परमाथेनपरोपकार । कारनेललिए, कारण से।... / 'अथे--चूक्ष ( स्वयं ) कसी ( '्पने ) फल नहीं खाते श्रौर नदी ( अपने लिए कभी ) जल का संग्रइ नहीं करती । कपीरदास कहते हैं कि ( चस्तुतः ) परोपकार के लिए ही साघु पुरुषों ने शरीर घारण किया हुआ दोता दै । श्र्थात खब्जन परोपकारी लोग दूसरे के भले के लिए घन आदि का संपरद्द करते हैं, उनका जन्म परोपकार के लिए ही दोता है । है, जाति न पूछो ' '* * ' दो स्यान ॥ परिचय--इस पथ्य में कप्रीर साधु के ज्ञान की श्रशंसा काते दैं। शब्दाधे--साघन्साधु | तरवार-तलवार 1 अथ--( कबीर कहते हैं ) साधु की जाठि न पूषठिये, उसका ज्ञान पूछु लीजिये, तलवार का मोल करो (जो श्रसलों चोज़ है ) उसको म्याव को एक ओर पढ़ा रहने दोजिए । ध्रर्थाठ जेमे तलवार की क्रीमत उसके म्यान के कारण नहीं होती; प्रद्युत तलवार के कास्ण होती है, इसी प्रकार साधु का मूक्य डसकी जाति के कारण नहीं, बढ़िक उसके ज्ञान के कारण दे | अतएव साधु की जाति से कोई वार्ता नददीं, उसके जान से होना चाहिये । ७, साधु ऐसा चाहिए” * ' ”*'“बगीचा साँहिं ॥ परिचय--इस पय में कबीर साधु की नित्संग दशा ( अ्रक्नग रदने की दशा ) या किसी को दुग्ख न देने की यृत्ति का वसग करते दें । ही




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