सेठ धन्नाजी | Seth Dhanna Ji

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Seth Dhanna Ji by जवाहिरलाल जैन - Javahirlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथारम्भ (७) भा समकर छाप भविष्य से धन्ना की प्रशना न करने के छिए हमें विश्वास दिलावेंगे, लेकिन शाप तो और उसकी प्रणसा की पुष्टि कर पढें हैं । आप उसको पुण्यात्मा श्र सदूभागी कहते हैं तो क्या हम तीनो पापार्मा श्बौर दुर्धीगी हैं ? नसाग् ने उत्तर दिया, फि-सैंने तुम छोगों को पापात्सां या दभीगी ता कभी नहीं कहा ! मैने तो केवल उसकी प्रशसा की हैं आर वह भी उसका नार-जिवार गाड़ते समय धन सिफलने, विद्या-बुद्धि झादि से उसके निपुण होने और उसकी सर्प्रियता के कारण । लड़कों ने कहा-घस, नार-बिवार गाड़ते समय धस सिफलन के कारण ही श्राप उसको सदुभागी कह कर उसकी प्रद्यासा करते ही हमारी चृथ्टि में यह कोई सद्भाग्य की चात नहीं है, किन्तु हम नो ऐसा समझने हैं कि घनकुचर को झाप संपन्न देना चाहते थे, उसके जन्सोत्सव से शाप दस लोगों के जन्मोरतव की झपेक्षा ाविक व्यय करना चाहते थे, इसलिए व्ाप ही ने बाटिका में धन का दण्डा गढ़ दिया बौर हुण्डा निफाल कर यह प्रसिद्ध कर दिया कि नार-बिवार गाड़ते समय धन निष्छा । ऐसा करके आपने घन्ना को सद्भायी भी बताया वीर उसके जन्मोत्सव में वह द्रव्य भी व्यय कर दिया । घर से से निलाल कर इतना घन व्यय करने में दम छोगों के कारण '्ापकों संकोच रहता, झापकों यह भय था कि इतना घन व्यय झरने में उडके किसी प्रकार की बाधा डाल देंगे, इसलिए 'सापने यह मागे निकाला । ऐसी दू्ा में हम लोग घनकुवर




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