श्रीमद् राजचंद्र | Shrimad Rajchandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
962
श्रेणी :
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No Information available about पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-सूची ६५
पत्रांक थ पृष्ठ पत्रांक सा
३८१ आत्माका घम आओत्मामें ३५४ | ४१४ साधुको पत्र समाचार आदि ढिखनेका
2... ध्यान देने योग्य बात ३५५ विधान ३७६--९
३२८२ शानी पुरुषके प्रति अधूरा निश्चय २५६ | ४१५ साधुकों पत्र समाचार आदि लिखनेका
२८३ सच्ची ज्ञानद्शासे ढु खकी निवृत्ति ३५६ विधान ३७९६-८३
३८४ सबके प्रति समर्दष्ट ३५७ | ४१६ पचमकाल--असंयती पूजा २८२
३८५ महान पुरुषाका अभिप्ाय २५७ | ४१७ नित्यनियम २८२
३८६ बीजश्ञान २५८ | ४१८ सिद्धातबोध और उपदेशवेध २८ ३-५
२८७ सुघारसके संबंधमे ३५८-९ | ४१९ संसारमें कठिनाईका अनुभव ३८६
२८८ इंश्वरेच्छा और यथायोग्य समझकर मौनभाव २६० | *४१९ ( २ )आत्मपरिणामकी स्थिरता २८६
३८९ ** आतमभावना भावता ”' २६० | ४२० जीव और कर्मका सबंध ३६ ६-७
३९० सुधारसका माद्दात्म्य २६१ संसारी और सिद्ध जीरवोकी समानता ३८७
३९१ गाथाओँका झुद्ध अथे ३६१ | +४२० ( २) जैनदर्शन और वेदान्त ३८८
३९२ स्वरूप सरल है ः २६१ | ४२१ वृत्तियोंकि उपशमके लिये निद्नत्तिकी
२७ वाँ वर्ष आवश्यकता ३८८
२९३ शालिभद्र घनाभद्रका वैराग्य _. ३६२ | ४२२ शानी पुरुषकी आज्ञाका आराघन ३८९
३९४ वाणीका संयम ः ३६२ अज्ञानकी व्याख्या के ८९-९०
३९५ चित्तका संक्षेपभाव क ६२ | ४२९ (२) “निसे जिणाण॑ जिदमवाण” ३९०-१
३९६ कविताका आत्मायके लिये आराघन ३६३ | ४२३ सूदम एकेन्द्रिय जीवोंकि व्याघातसबधी प्रश्न ३९१
३९७ उपाघिकी विशेषता ३६४ | ४२४ वेदात और जिनसिद्धातकी तुलना ३९२
३९८ संसारस्वरूपका वेदन ३२६४ | ४२५ व्यवसायका प्रसंग ३९३
२९९ सब घर्मोका आधार शाति ३६४ | ४२६ सत्संग-सद्बाचन ३८ ३
४०० कर्मके भोगि बिना निदत्ति नहीं ३६५ | ४२७ व्यवसाय उष्णताका कारण ३९३
४०१ सुदर्शन सेठ 7 ३६५ | *+४२८ सद्गुरुकी उपासना ५
४०२ “” शिक्षापन्न ३६५ | ४२९ सत्संगर्म भी प्रतिबद्ध घुद्धि 2९४
४०३ दो प्रकारका पुरुषार्थ ३६५ | ४३० वैराग्य उपशाम आनिके पश्चात् आत्माफे
४०४ तीर्थकरका उपदेश ३६६ रूपित्व अरूपित्व आदिका विचार 3५४
४०५ व्यावहारिक प्रसगोंकी चित्र-विचिन्रता ३६७ ४३६१ पत्रलेखन आदिकी अदाक्यता ३४
४०६ षट्पद ३६७-९ | ४३२ चित्तकी अस्थिरता इक
*+४०६ (२) छद्द पद ३६९ चनारसीदासकों आत्मानुभत ३९५
४०७ दो प्रकारके कम ३२७०-९४ प्रारूघका चेदन 2११
४०८ संसारम अधिक व्यवसाय करना ४३३ सतपुरुपकी पिचान ३१
योग्य नहीं ३७१ | ४३४ पद आदिफे येचिने फिचारमेग उपयोग
क४०८ ( २;३,४ ) यदद त्यागी भी नहीं ३७२ कि सन. डेट
०९ यहस्थमें नीतिपूवक चलना ३७२ ! ४३५ वाद्य सादादयफी सनिरण प+ १
४१० उपदेशकी आकाक्षा ३७३ सिद्धोरी अपगारना उग्पनकाहण
४११ ' योगवासिष्ट * 3७३ ' पद पश्यन्यप और सिद्ेर्यन पर दो दिन एके
४१२ व्यवसायकों घटाना ३७३ “४३०७ व्ययहारणा रियर प*ं
१३ चेराग्य उपशसकी प्रधानता इंउय. अर समाधान इतर
३८४५ रथ देने ममतयझा शनाप कक
उपदेशशान और सिद्धातशान
+४१३ (२) एक चैतन्य रुप किस तरह घटना ऐ है २७५
पा
दे बग्गः श
कि
नल रन थे रास
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