जम्बूस्वामिचरितम | Jambuswamichritam

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Jambuswamichritam by पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) अमृतचन्द्रसूरिको स्मरण किया है । कविने इस छोटेसे प्रन्थमें आत्म- ए्याति समयसारके ठंगपर अनेक छन्द, अलंकार आदिसे छुसजित अध्यातमाख्की एक अति सुन्दर रचना करके सचमुच जैन साहि- त्यके गौरवको वृद्धिंगत किया है । कवि राजमछकी इन चार कृतियोंमें, जेसा ऊपर कहा जा चुका है, जम्बूखामिचरितकी रचनाबि० सं० १६३२ और ढाटीसंहिताकी रचना बि० सं० १६४१ में ह्र्‌ है । शेष दो प्रन्थोके समयके विषयमे प्रन्थकारने स्वये कुर भी उख नहीं किया । परन्तु मादरम होता है कविवी सवैप्रथम रचना जम्बृखामिचरित है, ओर्‌ दसी रचनके उपरे इन्होंने ‹ कवि › की प्रख्याति प्राप्त की | इसके बाद किसी कारणस कविको आगरेसे वैराट नगरमे जाना पड़ा, ओर वयं जाकर इन्होंने जम्बूस्थामिचरितके नौ वर्ष बाद काटीसंहिताका निर्माण किया । जम्बूस्वामिचरितके कई पद्य भी छाटीसेहिताम अक्षरशः अथवा कुछ परिवर्तनके साथ उपलब्ध होते हैं| पंचाध्यायी और अध्यात्मकमलमार्त्ण्ड कविकी इन रचनाओंके बादकी ही कृतियाँ जान पड़ती हैं ।माढ्म होता है जेसे जैसे कवि राज- मछ अवस्था और विचारों प्रौढ होते गये; वैसे वैसे उनकी रुचि अध्यात्मकी ओर बढ़ती गई । फठतः उन्होने अपने आत्म-कल्याणके लिये इन दोनों ग्रन्थोंका निमोण किया | अब इन दोनोंमें संभव है कि पंचाध्यायी पहिले बनी हों, और उसके संक्षिप्त सारको लेकर १ १० जुगलकिशोरजीने लाटीसंहिता ओर पंचाध्यायीमें ४२८ समान प्यके पाये जानेका उद्टैख अपनी उक्त भूमिकामे किया दै । इन पद्मोंका लाटीसंदिताम- से ही उठाकर पचाध्यायीमे रक्खा जाना आधिक संभव जान पडता हे ।




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