चिद् विलास | Chidvilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रन्थ के सम्बन्ध में [ € सगम परिलक्षित होता है । जसे झ्राध्यात्मिक चर्चा करते हुए उन्होंने अष्टसहस्री एवं श्राप्तमीमासा के उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं । ग्रन्थ मे समागत कतिपय महत्त्वपूर्ण वाक्य-उपवाक्य निम्त- प्रकार हैं । यद्यपि इनका पूर्णत श्रानन्द पुरे प्रसंग के साथ पढने पर ही झ्रायेगा, फिर भी किव्नचितू रसास्वाद कराने की दृष्टि से उन्हें ग्रस्थ की सूल भाषा मे ही श्विकलरूप से दे रहे हैं - (१) यह द्रव्य का सतुस्वभाव श्रनादिनिधन है, द्रव्य-गुण भ्रन्वयश क्तिकों लिये हैं, सो पर्याय क्रमवर्ती सो व्याप्त हुभ्ना भी द्रव्याथिकनय करि श्रपने वस्तु सतकरि जैसा है तेसा उपज है। पर्याय की श्रपेक्षा करि उपजना ऐसा है, पर श्रस्वयी दाक्ति मे जसा का तेसा है तौ भी ल्याया है । पर्याय शर्वित मे अ्सत्‌-उत्पाद वताया है, (सो) पर्याय श्रौर श्रौर उपजे हैं। ताते कहा है, पर श्रत्वयो शक्तिसौ व्याप्त है। पर्यायाधिकनयकरि हैं ।” (२) पर्याय द्रव्यकौ कारण, द्रव्य पर्यायको कारण, यह तौ कारणरूप हैश पर पर्याय का कायें पर्यायहीतेह्वं ; है । द्रव्य का कार्य द्रव्य होते ह है ।” (9) जेसे एक नर के श्रनेक झ्रग है, एक श्रग मे नर नाही; सब श्रगरूप नर है, तैसे द्रव्यरूप, गुणरूप, पर्यायरूप जीव नाही, जीववस्तु द्रव्य-गुण-पर्याय का एकत्व है, एक अग मे जीव होय तो ज्ञानजीव, दर्नजीव, झचतगुण योश्प्रनतर्जीव होय, ताते श्रनतयुण का। पु ज जीववस्तु हैं ।* (४) द्रव्यकरि गुण-पर्याय हैं, गुण-पर्यायकरि द्रव्य है, द्रव्य गुणी है, गुण गुण है, गुणीते गुण की सिद्धि है, गुणते गुणी को सिद्धि है।* 1. इसी पुस्तक मे पृष्ठ ५७ पर इसका श्नुवादित झश मल 2. इसी पुस्तक मे पृष्ठ ५८ पर इसका श्रनुवादित भर श देख । ३. इसी पुस्तक मे पृष्ठ ८२ पर इसका अनुवादित भर श देखें । 4 इसी पुस्तक से पृष्ठ ८४ पर इसका प्रनुवादित अर श देखें ।




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