श्री जवाहर किरणवाली भाग - १५ (प्रार्थना बोध ) | Shri Jawahar Kirnawali Part -15 ( Prathna Bodh)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जगत् के इस विषमय वातावरण मे यह उदार भावना किस प्रकार
आ सकती है? किस उपाय से भूतल के एक कोने मे रहने वाला मनुष्य, दूसरे
कोने के प्रत्येक मनुष्य को अपना भाई समझ सकता है?
इस पश्न का मेरे पास केवल एक ही उत्तर है। वह यह है कि
त्रिलोकीनाथ की विजय की भावना मे ही विश्वशाति की भावना निहित हे।
इस प्रकार की व्यापक भावना त्रिलोकीनाथ की विजय चाहने से ही हो
सकती है। त्रिलोकीनाथ परमात्मा की विजय चाहने से अन्त करण मे एक
प्रकार की विशालता समभावना आती है। ऐसा चाहने वाला व्यक्ति सोचता
है कि मेरा स्वामी त्रिलोकीनाथ है । ससार के समस्त प्राणी उसकी प्रजा है |
मै जब त्रिलोकीनाथ की विजय चाहता हू तो उसकी प्रजा मे से किसकी
पराजय, किसका बुरा सोचू? मै जब त्रिलोकीनाथ की विजय चाहता हू तो
उसे प्रसन्न करने के लिए उसकी समस्त प्रजा का भला चाहू। परमात्मा की
विजय चाहने से इस प्रकार के विचार अन्त करण मे उत्पन्न होते है और इन
उदार विचारों से राग-द्वेष का भाव क्षीण हो जाता है। जितने अशो मे विचारों
की उदारता होगी उतने ही अशो मे राग-द्वेष की क्षीणता होगी ओर जितने
ही अशो मे राग-द्वेष की क्षीणता होगी उतने अशो मे निराकुलता-शाति प्राप्त
होगी | इस प्रकार विश्वशाति का मूल मत्र है परमात्मा की विजय की कामना
करते रहना |
इस विजय कामना की एक विशेषता यह भी है कि इसकी आराधना
से सामूहिक जीवन के साथ ही साथ वैयक्तिक जीवन का भी विकास होता
है। इससे सिर्फ राष्ट्र या राष्ट्र-समूह ही लाभ नहीं उठा सकते वरन पत्येक
प्यक्ति भी अपना जीपन उदार समभावपूर्ण और शान्त बना सकता है।
पथम तो परमात्मा के भजन करने फा अवसर मिलना ही अत्यन्त
फठिन है तिस पर अपेक प्रफार की याधाए सदेय ताकती रहती हे आर माका
मिलते री उस अपसर फो प्यर्थ दवा डालती हे । इस प्रकार मानव जीवन दी
यर घडिया अपमोल है । यह घडिया परिमित हे । ससार मे कोई सदा जीपित
नही रहा ओर व रऐेगा ही । अतएप प्राप्त सुअपसर से लाभ उठा लेना प्रत्यक
टुद्धिमाव मवुष्य यंग फर्टप्य है। अतएव परम भाय से परमात्मा फा स्मरण
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