बुद्ध और बौद्ध साधक | Buddh Or Bouddh Sadhak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बुद्ध के स्वभाव व जीवन की विशेषताएँ १
नहीं हुश्ना, इसीलिए वद्द झरण्य, वनखंड और सूनी कृटिया का सेवन
करता ट् 1 ब्राह्मण | ड्से इस प्रकार नहीं जानना चाहिए । न्नाह्मण !
दो बातों के लिये में झरण्य सेवन करता हूँ : इसी इश्यमान शरीर के
सुख-विद्ार के लिये श्ौर झागे श्राने वानी जनता पर अजुकम्पा
के लिये, जिससे मेरा अ्रलुसरण कर वह सुफल की भागी वने |”
भगवान् बुद्द चिन्दा और स्तुति दोनों से परे थे । एक बार
सुनच्त्र चामक लिंच्छवि सरदार मिचु-संघ में प्रविप्ट होने के चाद
उसे छोड़कर चला गया झऔर बुद्ध के विएय में अवाद फेलाने लगा कि
इनका धर्म तो केवल इनकी बुद्धि की उपज है श्र ऐन्द्रिय श्रनुसूति
से थागे गोतस का कान नहीं जाता । जब यइ बात सारिपुन्न ने शास्ता
को सुनाई तो उन्द्ोंने कहा, “वह नासमक मलजुप्य क्रोध के वश में हो
गया है। क्रोध के कारण ही उसमे ऐसा कहा है ।” एक वार एक
ब्राह्मण ने भगवान् को “चोर” श्रौर 'गघा” तक कद दिया,किन्तु सगवान् _
ने उसे शान्तिपूर्वक सुनते हुए यद्दी कहा, “गाली देनेवाले को जो लौट-
कर गाली नहीं देता वह दुददरी 'विजय प्राप्त करता दे ।” भगवान् के
श्वसुर ने जब उन्हें श्रपनी येराग्य-दुत्ति के लिये कपिलवस्तु में यालियाँ
सुनाई' तो चदुले में उनके सुख से केवल संन्द मुस्कान ही वे निकाल
सके । सम्भवतः बुद् का यह अथम वार स्मित अकट करना था । कुछ
लोगों ने गोतम को “वृपल तक कहा, उन पर व्यमिचार के श्ारोप
तक लगाये, दूसरों ने उन्हें भगवान्” 'मदर्पि” 'देवातिदेव” कदकर पूजा,
किल््तु भसवाच, दोनों हो दालतो;में पूर्ण थनासक्त रहे । अपने
शिप्यों के लिये उनका कहना था, “मिछुओ ! यदि दूसरे लोग तुम्हारी
निन््दा करें तो न तो तुम्हें इस कारण उनसे क्रोध श्र ट्वंप ही करना
चाहिए श्र न थपने हृदय में जलन ही श्रज्ुसव करनी चाहिए । इसी
प्रकार यदि दूसरे लोग तुम्हारी प्रशंसा करें तो दुम्दें इस कारण
मसन्न भी नहीं होना चाहिए ।” कोशलराज प्रसेनजित भगवान
के शरीर के अति श्त्यन्त यौरव प्रदर्शित करता था, सिर से भगवान् के
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