साहित्य चिंतन | Sahitya Chintan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस्ट इंडिया कंपनी की भापा-नीति १3 विज्ञान, झाइन, राजनीति, अथ-विज्ञान, गणित, यरोपीय भापाओं आदि के पठन-पाठन की व्यवस्था, की । बस्तु, यह तो निर्विवाद हैं कि कंपनी सरकार ने झअँगरेजी भाषा के वाद फ़ारसी भापा और दिंदुस्तानी भापा को अपनाया, सन्‌ १८३७ के रेग्यलेशन में फारसी के स्थान पर लोकभापाओं को स्थान देने का उल्लेख है। किन्तु वह लोक भाषा हिंदी न होकर हिन्दुस्तानी (जेंसा कि पहले था) । ऐसा क्यों हुआ, इस पर आगे विचार किया जायगा | फारसी भापा के विपय में तो कोई कगड़ा नहीं है । किन्तु हिन्दुस्तानी भापाकी उत्पत्ति, उसके रूप, अथ आदि के विपय में विद्वान काफी उलकन में पड़े हुए हैं । इस उलमन के सुलक जाने से इंस्ट इंडिया कंपनी की भापा- नीति और भी साफ हो जाएगी । इंस्ट इंडिया कंपनी की हिंदुस्तानी के रूप और अथ पर विचार करने से पहले हिंदुस्तानी भाषा के दो अथ सममक लेना ठीक होंगा । कंपनी के राजत्व-काल में हिंदुस्तानी मापा का एक शास्त्रीय अर्थ मिलता है, और दूसरा व्यावहारिक झथ । शास्त्रीय अथ में हिंदुस्तानी से सूचा हिंद की मूल जनता की उस भापा से तात्पयं था जिस में ठेठ (हिंदी) शब्दों का अत्यधिक प्रयोग होता था और जो न तो झुद्ध संस्कृत की शब्दावली से माराक्रांत रहती थी और न श्रवी-फ्ारसी के शब्दों से लदी हुई । हिंदी श्र उर्द इसी मूल हिंदुस्तानी के दो साहित्यिक रूप थे और हैं । यद्दी मूल हिंदुस्तानी सब से '्धिक सममी श्र वोली जाती थी आर अब भी सममी और वोली जाती है । अंतर केवल इतना ही हैं कि हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह सच प्रकार से देश की भाषा है, किन्तु उद' का धड़ तो मारतवर्प में है, और सिर अरव और फ़ारस में हैं । व्यावहारिक 'अथ में हिंदुस्तानी उस भाषा का नाम था जिस का मूलाधार तो मूल हिंडुस्तानी थी लेकिन जिस में अरवी-कारसी के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग होता था घ्मौर साधारणतया क्ारसी लिपि में लिखी जाती थी । सन्‌ १७५७ से सन्‌ १८३७ तक दिंदुस्तानी शब्द का उपयंक्त दोनों श्र्थों में प्रयोग हुआ है । इस्ट इंडिया कंपनी की हिंदुस्तानी का रूप देख कर यही कहना पड़ता दूँ कि उस ने उस को दुसरे अथ में ग्रहण किंया । उस ने नागरी लिपि का प्रयोग श्यवश्य किया है, इस का कारण शारो बताया जायगा । झागे भाषा के शर्थ में हिडस्तानी शब्द का प्रयोग साघारणतया दूसरे अथ में -. किया गया है ।




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