त्रिलोक भास्कर एक अध्ययन | Trilok Bhaskar Ek Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Trilok Bhaskar Ek Adhyayan by मोतीचंद जैन सर्राफ़ - Motichand Jain Sarrafरवीन्द्र कुमार जैन - Ravindra Kumar Jain

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

मोतीचंद जैन सर्राफ़ - Motichand Jain Sarraf

No Information available about मोतीचंद जैन सर्राफ़ - Motichand Jain Sarraf

Add Infomation AboutMotichand Jain Sarraf

रवीन्द्र कुमार जैन - Ravindra Kumar Jain

No Information available about रवीन्द्र कुमार जैन - Ravindra Kumar Jain

Add Infomation AboutRavindra Kumar Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
त्रिलोक मास्कर एक अध्ययन : पाइचात्य दार्भनिक श्ररस्तू का कथन है कि दर्शन का प्रारभ भ्राइचयें से होता है। वस्तुत इस चित्र विचित्र विश्व श्रौर विश्व के क्रिया कलापो को देखकर मानव मस्तिष्क चकित रह जाता है । इसलिए नाना प्रकार की कल्पनाएं करता है। कोई इस जगत्‌ को ब्रह्ममय श्रौर कोई ईदवर के हारा बनाया हुआ स्वीकार करता है, तो कोई झनादि निधन कोई मायामय मानता है तो कोई क्षणिक श्ौर श्रव्याकृत मानकर हो सतुप्ट हो जाता है । जैन दर्नन में अहिसा झ्नेकान्त कर्म सिद्धान्त श्रपरिग्रह स्याद्ाद जैसे लोकोपकारी सिद्धान्तो का निरूपण किया है उसी प्रकार लोक श्र उसकी रचना के सम्बन्ध मे विश्ञाल वाड्मय का निर्माण हुआ है। भ० महावीर स्वामी ने श्रपनी दिव्य ध्वनि मे जिन विपयों का प्रतिपादन किया है । उनमे दृष्टिवाद नाम का एक झग है उसके पाच भेद है -- परिकर्म, सुच्र, प्रथमानुयोग, पुर्वगत, श्रीर चूलिका इनमें से परिकर्म में गणित के करण सुत्रो का वर्णन है। इसके पाँच भेद है चन्द्र प्रजप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति जम्बुद्ठीप प्र्नप्ति, हीप सागर प्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्नप्ति । चन्द्र प्रज्ञप्ति में चन्द्रमा सम्बन्धी विमान श्रायु परिवार ऋद्धि गमन हानि वृद्धि ग्रहण, झ्रघग्रहण, चतुर्थाण ग्रहण श्रादि का वणंन है । इसी प्रकार सुर्ये प्र्नप्ति में सुयें सम्बन्धी श्रायु पवार गमन श्रादि का वर्णन है । जम्दूद्वा प प्र्ञप्ति में जम्बूद्दीप सम्बन्धी मेर कुलाचल महाह्वद (तालाव क्षेत्र कु डवन व्यतरों के श्रावास महानदी म्रादि का वर्णन है । दीप सागर प्रज्ञप्ति में श्रसख्यात दीप समुद्रो का स्वरूप वहा पर होने वाले भ्रकृचिम चैत्यालयों का वर्णन है । व्याख्या प्रज्ञप्ति मे भव्य पभव्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now