उस्ताद ज़ौक़ और उनका काव्य | Ustad Jauk Aur Unaka Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८ )
विरोधी ने कहा कि पत्थर में आग की समतिकी प्रमाण
क्या है? उन्होंने कहा कि जब पहाड़ में बढ़ने के कारण
गति है तो उसमें रहनेवाली अग्नि में भी गति होगी | विशेधी
ने कहा--पत्थर में अधि के होने का क्या प्रमाण है? . उन्होंने
कहा---यह' तो प्रत्यक्ष है इसमें प्रमाण की ज़रूरत क्या हे?
विरोधी नें कहा, किसी कवि के कोव्य का प्रमाण दिये. बिना
आपकी बात नहीं मानी जा सकती । उन्हों मे एक शेर फ़ारसी
का दूसरा उस्ताद सौदा का सुनाया ।
हर संग में शरार है तेरे ज़हूरका ।
प्रंश्नोत्तरी को खुन कर सब आदमी चकित हो गये ।
उस्ताद की जय हुई । उस दिनसे उस्ताद पुराने कवियों के
अन्थों को और मनोयोंग के साथ पढ़ने छगे 1
अकबर शाहने आपकी योग्यता पर मुग्ध हो कर आपको
ख़ाक़ानिये हिन्द # की उपाधि से विभूषित किया । उस समय
आपकी अवस्था सिंफ़॑६६ वर्ष की थी । इस पर लोगोंमें
बड़ी चर्चा हुई कि वादशाहने बूढ़े बूहें कवियोंको छोड़ कर एक
नव-युंवककों कविराज़ की पदवी दे डाली। पर बकौक महाकथि
भवकभूति--
झणा$ प्रजास्थाने गुश्पु शव सलिंगंन नव बय: हा!
उस समय मियाँ कल्छू हकीर ने भरी सभा में कहा था
+ अर्थात् हिन्दका खाक़ानी । ख़ाकानी 'फारसीका बहुत बड़ा कवि इुभा है
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