आर्य भाषाओं के विकास - क्रम में अपभ्रंश | Aarya Bhashaon Ke Vikash - Kram Men Apabhransh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( हे )
फ हे च्घ
अपचश में साहित्यिक रचता हने लगी थी, यर्यपि अभी तक उस समय का कोई ग्रे थ उपलब्ध
नहीं हुम्रा है ।
-्मामह भी ग्रपश्श से परिचित थे । ये छठी शताब्दी के ्न्त में वर्तमान थे ।
इन्होंने श्रपने 'काव्य' में लिखा है:
'“शुल्दायों सहितो काव्यमु गद्य पद्य च तंदू द्विंधा 1
संस्कृत प्राकृत चान्यदपखश इति त्रिया
भाभह के इस उस्लेख के ग्राघार पर, यह कहां जा सकता है कि छठी शताब्दी के अन्त
तक झपभ्रश भी कांव्य-भापा माती जाने लगी थो परन्तु इससे यह नहीं पता चलता कि पहु
भाषा किन लोगों द्वारा चोली जाती थी |
श---महाकचि दरुडी ( वि० झाठ्वीं शती ) ने अपने समय की साहिर्यिक भाषायों में
अपभ्रेश का भी नाम गिनाया है-
'प्ाभीरादिसिर: काल्येप्चपश्रश इति रंसूता: ।
शास्त्र तु, संस्कृतादन्यदू अपन शतयोदितम'”
(काव्यादर्य १ परि० श्लोक ३६)
दराडी के इस श्लोक के म्राघार पर यह निष्कर्ष मिंकाला जा सकता है:
श-आभीरादि यिरा ही भ्रपन्नश थी |
र--्काव्य में श्रपश्नश का प्रयोग प्रतिष्ठित हो गया था ।
६--'कुबलयमाला” कथा के कर्तों दाक्षिरय चिल्ल वा उद्योतनसूरि ( जि० नवीं शत्ती )
ने अपनी कथा में अपन श पद का प्रयोग विशेष भापषा के अर्थ में किया है--
कि प्ि अवच्म॑सकया का वि य पेसायभासिल्ला''
(कुचलयमाला प्रारम्भ, हस्तलिखिंत घ्र० पा०)
उ--रुदट ने ( वि० तवीं शहीं ) म्पने काव्यालंकार में भाषाओं के ६ भेद किए हैं “--
१, संस्कृत र. प्राकूृत रे. सागघ ४. पैदाची ४५. शौरसेनी ६. श्रपभ्श, जिसके देठा भेद के
कारण कई भेद हो गये थे--
'प्राकतसंस्कतमागधपिशाचशापाशच शोरसेनी च !
घष्ठोश्तर भूरिसेदो देशबविशेषादपश्नश । ” २.१२
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि मागधी भादि प्रांतीय भाषाओं के अतिरिक्त उन
प्रांतों में भ्पभ्न शा भी कुछ मेद के साथ प्रचलित थी । महू उनकी तरहू केवल एकदेशीय होकर
नहीं रह गई थी ।
प--राजदेखर--इनका समय भी नवीं शताब्दी हैं। राजशेखर ने बड़े कौशल से न
केवल राजसभा में त्यित्त कवियों के स्थात का निर्देश किया
क है, चरत् संस्कुत झ्रादि भाषाग्रों के
नचारस्वानों का उल्लेख भी कर दिया हैं । देखिए -- ः
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