आचारंग के सूक्त | Aacharang Ke Sukt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
357
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्र काषाराज् के सूक्त
७--महापरिदा' इसमे भोहसू्य परिपह उपसभ को महल
बरने का उपदेग है। यह घम्ययन विचिद है। इसरे विपय
का प्रतिपावन लिगुतिकार ने इस दातद हे किया है-- मोह समत्या
व
ब--बिभोक इसमे निर्वान--सम्तखिया--की मिधि है ।
ब--उपबागभूव इसमें भगवान महावीर के दीता के बाद
के बारह मए व्यापी दीद तपरवी जीवन का गन है।
ग् खपरोतत नौ हुवा मे विपम की चर्थों करने आती निय लि
प्रकार है--
सम भा लोगो जद बज्साइ जहु थ ठ पजहिपल्त ।
घुहबुक्लतितिक्लाबिय* समर. शोग्सारो ग॥ ३३॥
निस्तकमा* थे. लू भोलसमूत्वा परीकषहुबतन्या* ।
शिजानर भ्टमएं गयमे ये जिवेन एवविक॥ इ ॥
४. उपनिफ्् भीर आयायडू
जो» इलसुख मात्नशिया निकते हैं
*लेद घ्रौर शाहाण धस्यो से
६ 1-22:
इ--दसके क्रम के व्यय में देखिए भूमिका पू० '४ पा० टी० ६
नह नव पक) रगक दा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...