भाषा ज्ञान एवं रचना बोध | Bhasha Gyan Avam Rachana Bodh

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Bhasha Gyan Avam Rachana Bodh by सत्येन्द्र चतुर्वेदी - Satyendra Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हंव्द बोध श्र प्रयोग--राम बड़ा ही उद्धत लड़का है। वह सदा ही दुसरों से छेड़छाड़ किया करता है । यह उद्यतल्तैयार । गा, प्रेयोग--मैं सब कुछ करने को उद्यत हूं बच्चर्ते कि मैं पात हो जाऊ । ८. कुलल्वंदा । का प्रयोग--राजपुत श्रपने कुल की मर्यादा का सदा ध्यान रखते थे । गीन कुलन्तट, किंारा । प्रयोग--वाढ़ के कारण इस नदी के दोनों कल दूर तक कट गये हैं ! से ६. उद्यमन्प्रयत्त । के प्रयोर--बिना उद्यम कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता । उधमसउपद्रव । तक प्रयोग--मोहन श्राजकल बहुत उधम मचाने लगा है ॥ १०. दारन्वाण | ई! प्रयोग--तीक्षण झारों से बिद्ध होकर चहू रण-क्षेत्र में गिर पड़ा । लु- सर-्सरोबर, तालाब ।॥ प्रयोग--सब सरों में सानसरोवर पवित्र सानी जाती है + पक ९१. छुल्कल्फीस, चन्दा 1 मं प्रयोग--इस पत्रिका का चार्षिक दुल्क क्या है ? दि शुक्ल-नस्वच्छ, सफेद । कर प्रयोग--मेरा जन्म शुक्ल प्ष में हुग्ा था। हस के पंख शुवल होते हैं । रॉ १२, प्रसादन्कपा, देवता का भोग । कि प्रयोग--शुरुजनों के प्रसाद से मेरा कार्य सफल हो गया । उत्तीर्ण होने का पर उसने गणेषजी-के प्रसाद चढ़ाया । प्रासादल्महल ही पोग भ्रयोग--भव्य प्रासादों में निवास करने वाले उन दीन-दुखियों के कष्ट! ड् हर हद को क्या जाने जो सड़क पर सोकर रात ग्रुजारते हैं । ३१३. झंसन्करधा दि लए




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