भारतीय अर्थशास्त्र खंड 2 | Bharatiya Arthshastra Khand 2

Bharatiy Arthashastra Bhag - 2  by जे० बी० जथार -J. B. Jathar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीौद्योगोकरण : साधन तथा विधि ११ (करीक्युलम) में रखी जानी चाहिएँ । हाथ से होने वाले कार्यों के प्रति भारतवर्प में पाई जाने वाली ग्ररुचि के का रण मुख्यतया सामाजिक हैं । किन्तु इस तथ्य का एक कारण यह भी रहा है कि भ्रभी हाल तक भारतवर्ष के स्कूलों में वच्चों के सिए हाथ के कार्यों के लिए सन्तोपजनक प्रबन्व का थिलकुल श्रभाव-सा रहा है । कुछ कलाश्रों या उत्पा- दक क्रियाओं के माध्यम से प्रारम्भिक स्कूलों में शिक्षा देने के महात्मा गांधी के मौलिक विचारों पर शाधारित वर्वा-शिक्षा-योजना का उद्देय्य हमारी शिक्षा-पद्धति के उपर्युक्त दोपों को टूर करना है । वहुत-से प्रास्तों एवं राज्यों में इसका उपयोग हो रहा है ।* विद्यार्थी को श्रपनी भ्राँखों श्रीर हाथ का श्विकाथिक उपयोग सिंखलाना उचित थिक्षा- पद्धति का एक उद्देदय होना चाहिए । किसी भी भाँति की दिक्षा या उचित शिक्षा के अभाव से भारतीय श्रमिक केवल श्रवुदाल और श्रविव्वसनीय ही नहीं हो जाता, वरन्‌ उसकी ग्रात्मोन्नति की सारी श्रभिलापा ही मर जाती है। दिक्षा उसकी श्रावश्यकत्ताओं को बढ़ा देगी, उनकी पति के लिए श्रघिक श्रौर श्रच्छी तरह से काम करने के लिए उसे प्रेरित करेगी श्रीर इस प्रकार उसके जीवन को समुन्नत कर देगी । भारतीय उद्योगों की एक समस्या यह है कि कुशल कार्यकर्ता, निरीक्षक एवं यन्त्रों के चालक वाहर से मंगाने पड़ते हैं । ये मपुप्य स्व भावत: महंगे पढ़ते हैं ग्रौर उन्हें ऊँची दर से पारिश्रमिक देना पड़ता है । इसके श्रलावा उनको उनके देवा वापस करते समय भी भारी खचं उठाना पड़ता है । श्रर्थ-ग्रायोग ने सिफारिश की थी कि सरकार को चाहिए कि विदेशी फर्मों को श्रार्डर देते समय शिक्षार्थियों (श्रप्रेंटिसिज) के प्रशिक्षण की दार्त भी टेण्डर में रखे । कुशल कार्यकर्ताओं, निरी क्षकों एवं यन्त्र-चालकों के श्रतिरिक्त भारतीय प्रबन्चकों की भी श्रावव्यकता है ! इस क्षेत्र में आवश्यक प्रशिक्षण के हेतु विदेका जाने के लिए राज्य द्वारा दी गई प्राविधिक छात्र वृत्तियाँ बहुत सीमित माता में ही श्रावश्य- कता की 'पुरति कर सकती हैं । इस समस्या का एकमात्र वास्तविक हल यह है कि देश में ही हर श्रेणी के प्राविधिक विद्यालय खोले जाएँ ताकि भारतीय उद्योग प्रत्येक प्रकार के विदेशी श्रम से छुटकारा पा जाएँ । श्रौद्ोगिक समस्याओं में झ्रनुसन्घान-कायं अत्यन्त महत्वपुर्ण श्रेणी का कार्य है । सरकार के वासन-सम्वन्धी झ्ावश्यकताश्ों के उद्देक्य से बनायी गई श्रत्यधिक साहित्यिक ढंग की दिक्षा कुछ श्रंदों में विद्यालयों तथा विदव- विद्यालयों में श्राघुनिक विज्ञान के झध्यापन श्रौर उसकी बढ़ती महत्ता के कारण कम हो गई है । विशिष्ट सत्यों से व्यक्तिगत सम्पकं एवं प्रयोगशाला में सम्भव प्रमाण- योग्य तक का श्रम्यास मचुष्यों के विचारों श्रौर क्रियास्रों को लाभकारी दिशा प्रदान करते हैं । वाणिज्यिक एवं प्राविघिक स्कूलों तथा कॉलेजों के भी ऐसे ही बांछनीय फल होने चाहिएँ । जीवन-संघर्ष की बढ़ती तीव्रता पढ़े-लिखे लोगों को सरकारी नौक- रियों की अपेक्षा व्यवसाय की श्रोर खींच रही है, क्योंकि सरकारी नौकरियाँ झसंख्य २. ए० एव्वट और एस० एच० बुड; 'रिंपोटे ्रॉन वोकेशनल एजुकेशन इन इंसिंडियार; पृ० ३३ 1 २. “रिपोर्ट श्रॉफ़ द जाकिरहुसेन कमेटी; सेक्शन 2 | इ. सी० जे० बर्कें, 'द वर्ा-स्कीम ॉफ़ एजुकेशन,” द्वितीय संरकरण, श्ध्याय € 1




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