सुनो कहानी मनफर की | Suno Kahani Manfar Ki

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Suno Kahani Manfar Ki by प्रेमभाई - Prembhai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र सुनो कददानी मनफर की सन्‌ १६५५ में सरकार ने इस जगह एक श्राहर बाँघने की योजना स्वीकार की । पहाड़ी से थोड़ी टूर हटकर: उस तलहदी में एक बाँघ वाँघा गया । इस पर काम करते कुल लागत करीब दे, ४०० रुपये हुई । पास में बहनेवाले एक छोटे नाले पर चाँघ डालकर उसका पानी भी इस श्राहर में ले श्राया गया । इससे पानी का संचय श्रीर बढ़ गया । इस नाले को बाँधनें का ख्चें करीब ६५० रुपये हुआ ! तालाव वनने के वाद भी श्रीर नाले का पानी उसमें ले श्राने के वाद भी सिंचाई के लिए काफी सुविधा गाँव में त हो पायी । तब गाँववालों नें सोचा कि पास में जो छोटी नदी बह रही है, उसी पर यदि बाँध डाला जाय श्रौर जरू- रतमर पानी तालाव में लेकर बाकी पानी वापस नदी में छोड़ दिया जाय, ती पचाई की समस्या काफी हुद तक सुलभ सकेगी 1 क्षेत्रीय धिकारियों ने इस योजना के लिए विशेष उत्साह न दिखाया । तो भी गाव के उत्साह फो देखते हुए कार्यकर्ताओं नें गाँव के सामूहिक श्रम के भरोसे पर ही नदी पर बौघ डालने को योजना मंजूर कर ली । गांव-सभा का प्रस्ताव किया गया ौर दो ये लगातार गाँव के हर परिवार ने इस काम के लिए धमदान किया । सन्‌ १९६० श्र १६६१ में वॉध के लिए मिट्टी




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