नेताजी संपूर्ण वाङ्मय खंड 2 | Netaji Sampurn Vangmay Khand 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्ण्पि स्वायत्त-शासन में हो दखल दिया, जो पुरानी ग्राम-पंचायत प्रणाली पर आधारित था। पर अग्रेजी राज के साध एक नया धर्म, नई सस्कृति और एक नई सभ्यता आई जो यहां की पुरानी धारा से मिलना नहीं चाहती थी बल्कि उस पर पूरी तरह हावी हो जाना चाहती थी। अप्रेजों ने अपने से पहले वाले आक्रमणकारियों की तरह भारत को अपना घर भी नहीं बनाया। वह अपने को सदा मुसाफिर या यात्री ही मानते रहे और भारत को मात्र एक साय या धर्मशाला। साथ ही भाएत को उन्होंने कच्चे माल का दाता और अपने को तैयार माल का उपभोक्ता ही माना। इसके साथ-साथ उन्होने मुसलमान शासकों की निस्कुशता की नकल करने की कोशिश तो की, लेकिन स्थानीय मामलों में जगा भी दखल न देने की उनकी समझदार नीति पर वे नहीं 'चले। इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीयों ने अपने इतिहास में पहली वार यह महसूस करना शुरू किया कि हम पर एक ऐसी जाति का प्रभुत्व है जो सास्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक हर दृष्टि से परकीय है और उसमे और हममें किसी वात की समानता नहीं है। भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व के विरुद्ध इस व्यापक विप्लव का एक मात्र यही कारण है। भारत के आधुनिक राजनीतिक आदोलन को उचित पर्प्रिक््य में समझने के लिए यहां की पिछली राजनीतिक विचारधारा और राजनीतिक व्यवस्था पर सरसरी मजर डालना आवश्यक है। भारत की सभ्यता अधिक नहीं तो भी 3000 ई. पू से तो आरंभ होती ही है और तथ से आज तक सस्कृति और सभ्यता की अजस्र धारा बहती रही है। यह अजस धाए भारत के इतिहास की एक यहूत बड़ी विशेषता है और यही यहां के लोगों की अतः:शक्ति और उनकी सभ्यता एवं संस्कृति का आधार है। उत्तर-पश्चिम भारत में मोहनजोदडो और हड़प्पा की हाल की खुदाइयों से यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गया है कि बहुत नहीं तो भी कम से कम 3000 ई.पू में ही भारत सभ्यता के बहुत ऊंचे शिखर पर पहुच चुका था। यह सभवतः भारत पर आर्यों की विजय से पहले की बात है। अभी से यह कहना तो संभव नहीं होगा कि इन खुदाइयों से तत्कालीन राजनीतिक इतिहास पर कितना प्रकाश पड़ा है लेकिन आर्यों के भारत-विजय के बाद के तो बहुत से तथ्य और ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध हुई है। आदि वैदिक साहित्य में राजतंत्र से भिन प्रकाए की शासन प्रणाली का उल्लेख मिलता है। जहां इस प्रकार की शासन-व्यवस्था थी वहा जन-जातियों की लोकतानत्रिक प्रणाली थी। उस युग में वैदिक समाज या समुदायों में 'ग्राम' सबसे छोटे और “जन' सबसे ऊंचे सामाजिक सगठन होते थे।' बाद के महाकाव्यों, जैसे कि महाभारत में तो गणतांत्रिक राज्यी” का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस बात के मो जोन है कह कद ता कर न बात के भी प्रमाण है कि अत्यंत प्राचीन काल में भी सार्वजनिक प्रशासन के बारे द्दू योलिटी एड पोलिटिकल द्वोतज', ले नारायण चढद्र बद्योपाध्याय, पृष्ठ 60, प्रकाशक - छुड क , 15 कालेज स्क्वायर, कलकत्ता । भाएत', ले के पी. जायसवाल (खड-1, पृष्ठ, 173-8) 4. ' डेवलपमेंट आफ चक्रवर्ती चटर्जी ए: 2. * रिपब्लिक्स इन महा




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