आखिरी खेल | Aakhiri Khel

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Aakhiri Khel by कृष्ण बलदेव वैद - Krishn Baladev Vaid

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| शत शा श्र लक त 18 हे [स्क्िद उच्ी दर्द डर रहा हैं पं चर न बडा, बाद द [क्वीद खड़ा रहता हैं पे तर 2 पर ् 1 वह मी ठीक्ष हो है । [खानोशी ] चादर साने जा रहा हूं । [दरवासये को तरफ़ बढ़ता है 1] हेम : ठहरो ! क्लोव रुक जाता है 1] दिन भर में एक बिस्कुट मिला करेगा । [िमोशी 3 न नहीं डेढ़ 1 [खामोश ह तुम भाग बयों नही जाते कहीं ? क्लोव : तुम मुझे निकाल क्यों नहीं देते ? हैम : तुम्हें निकाल दूं तो रखूँ किसे ? बलोव : भागकर जाऊें कहाँ ?




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