सिखयद्ध दोनों युद्धोंका इतिहास | Sikhyaddh Dono Yuddhon Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पप्नावको दशा । पू इस प्रकार सिख-जातिकी अप्रसन्नताके बदले राजाके गुट खड़कों व्यपना प्रेमी वनाकर बच राजप्रसें सिखों की ्ासिकारी, पर व्यज्रेजों के फायदेको वहुतिरी चाल दिखाने लगे | रखजीतके पोते खड़-पुच् नोनिशाल सिंछका उसख प्ले कर चुके हैं ; इस प्रवीण वालककी गम्मौरता देखकर लोगों ने उसे दूलरा रणलौत विचारा था, स्वयं रणजीत सिंघ हो उसकी सुवुद्धि यौर खुगकौशलसे सोचित कोकर कहा करते थे, “मेरी स्टयुके वाद प्ञाववासी इस लड़केकों चौ व्यपना सच्चा राजा पावंगे । वालक नौनिद्ाल सिंको राष्यकी यद्च प्ेच्चनीय दशा देखकर च्यांख शिराने पड़े। उन्होंने घिलिचण घविचार लिया, कि चुटिल मन््री चेत सिंघ और व्यज्रेजी स्वाधेमाव चाइनेवाले करनल वेडकी रछते पिताव्मी सलिगति सुधघरनेको सम्मावना नद्ीं है । यार सुप्रवन्चके विना इतनी खूनखरावौसे स्थापित विशाल राष्यक टिकनेकी सम्भावना .भी नषीं है। सो नोनिद्धाल सिंहकों कुदयर्से रोकर पिताकों इन कुमन्त्रियोंसे वचालेकी तदौर करवा पड़ी! राष्यरक्षाक लिये कुमारने व्यपने सदाके विरोधी जरसके राला ध्यान खिंदकी शरण ली । ध्यान लिंह, लादौर दरवारके धीन राजा थे। पर वच्च सदासे हरेक उत्साइशौल नरेशॉको सांति शक्ति प्रा करनेकी बड़ी : लालखा रखते थे । रणनीत सिदछको स्टयुके वाद रकमात कुमार नोनिदाल सिंछकी प्रबल बुद्धिमानी ो उगकों लालखाकी वाधक थी ।. पर य्यल , स्यं नोनिद्ाल 'हो उनकी शक्तिके सिखारो है । ध्यान सिंछके 'ठो सिलेका पुरुष ऐसे मौकेको कब त्याग सकता है? ध्यान सिंघने शीघ्रदी लादौर पहुंचकर दरवार में राजाक सामरे 'ही मन्ती चैत,खिंदकी जान .खौो। इस प्रकार




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