चाँद सूरज के बीरन | Chand Suraj Ke Biran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|
श्राक के फूल, धतुरे के फूल
ं श्यृग की पिरारी में थे स्मृतियाँ श्राज मी बन्द पड़ी हैं । पिटारी
का दृकना उठाया नहीं कि पुरानी स्पूतियाँ जाग उठीं । शायद
इनका कोई क्रम नहीं, शायद इनका कोई श्रर्थ नहीं; ये. स्पतियाँ पिरारी से
सिर निकाल कर पाहर की हवा खाना चाहती हैँ, बाहर की मलक देखना
पाती हूं ।
घर में एक दुलहन' झाई है। रिश्ते में बालक की नाली है ।.. माँ
कहती है, “यह तेरी मौसी है ।” चावी--मौसी, मौसी-“नचापी ! बालक
की समझ में यह बात नहीं आती । दुसाइन तो ठुलदन है । शायद बालक
तना भी नहीं रामकता । वह तुलइन के पास से हिलता ही नहीं । माँ घूरती
है । शान क्यों घूरती है माँ ! बालक चुद नहीं समझा सकता | माँ खिलखिला,
करें हंस पड़ती हू; यह पवाहती है कि बालक उसका झंखल पकड़े कर भी उसी
तरह न्वही जिस तरह बढ अपनी मौसी _ का शंचल, पकड़ कर चलता ऐ ।
पालक यद नहीं समझ सकता । दुल्हन भीतर जाती हे. जहाँ झम्थकार है ।
भालक भी साथ-साथ रहता है । तुलदन कपड़े बरल रही है। खुम भी
साथ प्री आप ?” दुलइन हैँसकर पृछाती है । अन्धकार के बावजूद बह
ब्राल्क के गाल पर श्रापना हाथ रख देती है, उसे भींच लेती हैं । कपडे
थरत कर, नया लहंगा पहन कर वह बाहर निकलती है । साथनसाथ बालक
सता है; सुनहरी गोट बादी मलगनी लहूँगे से उसका हाथ नहीं हृटता ।
दुलइन अपनी सलियों के साथ नहर पर जायगी । वह सोचती है कि बालक
उसके साथ इतना कैसे घुल-मिल गंया । माँ श्रप्रनी जगह है, दुलहन श्रपनी
जगदद । तुलइम बालक को छुड़सी है, “सिरे शिए. मी तो दूंगी एक मर्हीं-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...