विश्वभारती पत्रिका | Vishvabharati Patrika Khand-8 Anka-2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vishvabharati Patrika Khand-8 Anka-2 by कालिदास - Kalidasरामसिंह तोमर - Ramsingh Tomarविश्वरूप बसु - Vishwaroop Basuसुधीरजन दास - Sudheerjan Daasहजारीप्रसाद द्विवेदी - Hajariprasad Dwivedi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कालिदास - Kalidas

No Information available about कालिदास - Kalidas

Add Infomation AboutKalidas

रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

No Information available about रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

Add Infomation AboutRamsingh Tomar

विश्वरूप बसु - Vishwaroop Basu

No Information available about विश्वरूप बसु - Vishwaroop Basu

Add Infomation AboutVishwaroop Basu

सुधीरजन दास - Sudheerjan Daas

No Information available about सुधीरजन दास - Sudheerjan Daas

Add Infomation AboutSudheerjan Daas
Author Image Avatar

हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

Read More About Hazari Prasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सिखारिन कण सुन लिया था और उसी समय कुछ पुरोहित को बुाकर विवाह का उत्तम दिन शीघ्र है या नहीं पूछा था । . ः यांव मैं सोइन के समान धनवान व्यक्ति दूसरा नहीं था ; भाकुल विधवा भन्त में उसके घर में जा पहुंची । मोहन ने व्यंग्य से हंस कर कहा “यह क्या अनहोनी बात । इतने दिनों के बाद दरिद्र की कुटिया मैं पदापंण कंसे हुआ ?' विधवा--उपदास न करो। मैं दखि हूँ; तुम्हारे पास सिक्षा माँगने भाई हूँ । मोदन--क्या हुआ है ? विधवा ने आदयान्त सार इत्तान्त सुनाया । मोहन ने पूछा; “तो; मुझे क्या करना होगा ?” विधवा--कमल की प्राणरक्षा करनी होगी । सोहन--क्यों; अमर सिंद यहाँ नहीं है १ विधवा ने व्यंग्य समका । बोली, “मोहन; यदि वासस्थानामाव से सुभ्हे वन-वन भटकना पड़ता; भनादार भूख की ज्वाला से पागछ होकर मरती फिर भी तुम्हारे पास से एक तिनके की भी प्राथना नहीं करती । किन्तु भाज यदि विधवा की एकमात्र सिक्षा को पूरा न किया; तो तुम्हारी निष्ठुरता सदा याद रहेगी ।” मोइन--आगो तुमसे एक बात कहूँ। कमल देखने में कुछ बुरी नददीं; और वह मुभहे पसन्द न हो ऐसी भी बात नहीं; फिर मेरे साथ उसके विवाह में तो कोई आपत्ति नहीं हो सकती ।. तुमसे छिपा कर क्या करना; बिना कारण भीख देने की स्थिति मेरी नहीं है । विधवा--अमर के साथ उसका विवाह. सम्बन्ध तो पहले ही हो चुका है। मोहन कुछ उत्तर दिए बिना बही-खाता खोलकर लिखने बैठ गया। जैसे कमरे में कोई दूसरा न दो» जेंसे किसी के साथ कुछ बातचीत ही न हुई दो । इधर समय बांता जा रहा है; दस्यु है अथवा चला गया इसका भी ठिकाना नहीं। विधवा ने रोकर ' कहा; “मोहन मुझे और अधिक कष्ट न दो; समय बीता जा रहा है ।” मोहन--ठद्दरो; काम पूरा कर लू । ' अन्त में यदि विधवा विवाह म्रस्ताव पर राजी न होती; तो सारे दिन में भी काम पूरा होता या नहीं इसमें संदेह है। विधवा ने मौहनलाल से धन लेकर दस्यु क्लो दिया; वह चला गया ।. उसी दिन भय आर्शका से श्रस्त हरिणी के समान विह्नछा बालिका साता की गोद में छोट भाई और उसके वाहुपाश में अपने मुख को ढँककर बहुत देर तक रोकर मन के बैग को शान्त किया . प्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now